*अज्ञानी की कलम*
अज्ञानी की कलम
तरतें वो रघुनाथ का सहारा
न पाये जो।
व्यर्थ जीवन गंवाये सुमार्ग
न जाये जो।।
ईश्वर अंश मां बाप को न
मना सका,
बाद मरने के जग को जीवाये जो।।
हमीं हस्तों हमीं हस्तों मां
बाप यही।
तिरिया ने जो नर को कुमार्ग पर
दिखाया जो।।
स्वार्थो में आज आदमी अंधा
बना हुआ,
अंधों की दौड़ में वह प्रति
भाग लिये जो।।
सम्पूर्णानन्द बना फिर रहा
सारे जहान में,
मुर्खो कि बस्ती का यह मुखिया
बना है जो।।
गर्दिश में दिन गुजारके फांके
करते हम,खुद से कभी मिलने
कि फुर्सत से लिए हैं जो।।
अपना न कोई घर न कोई
ठिकाना बना सके,
अज्ञानी परिस्थितियों बस
किये जा रहें हैं जो।।
जूनियर झनक कैलाश अज्ञानी
झांसी बुन्देलखण्ड