*अज्ञानी की कलम*
अज्ञानी की कलम
वृक्ष शराफ़त करें वफ़ा सी, जन मानस पे कुर्बान
गंगा जी जन को जीवन देती,*हर सुख सुविधा प्रदान*।
राम रमना जन का ओझा, संसारी जन दुःख से है ढुकास। मन से भजन करें जो उस की विधना, हो पूरी अरदास।
प्रीत करो जल मीन जैसी पानी संग छूटे प्राण दे जात। मन क्रम बचन से कर्म करते रहना*सबरी के राम बेरखात*।*अष्ट पहर भजे राम हनुमान, तन मन से विभोर।*रामचंद्र के काज संवारत*,*करें वंदना कर जोर*।
जूनियर झनक कैलाश अज्ञानी
झांसी उ•प्र•*