*अज्ञानी की कलम*
अज्ञानी की कलम
फ़ासिले समझदारी से
सुध़रे हैं।
ठोकरें खाके बेशुमार से
सुध़रे हैं।।
दगा देके वफादार लोग
बनते हैं।
मन के मनु हार से
सुध़रे हैं।।
दिल तरसे दिलें यार न
आये बेर्हम,
नैना निरखत निर्झार से
सुध़रे हैं।।
ख्वाहिशें न होती किसी
की पूरी,
बेरहम वक्त न जाने कैसे
सुध़रे हैं।।
झुक गई नज़रें मिलीं
नज़रों से,
नफ़रतें भूल के प्यार से
सुध़रे हैं।।
लोग अज्ञानी की विद्वता
क्या जानेंगे,
रहनुमाई देख तर्जुबे से
सुध़रे हैं।।
स्वरचित एवं मौलिक
जूनियर झनक कैलाश अज्ञानी झांसी बुन्देलखण्ड