अजीब है ऐ ख़ुदा तू, और तेरी ये ख़ुदाई भी,
अजीब है ऐ ख़ुदा तू, और तेरी ये ख़ुदाई भी,
अजीब है ऐ ख़ुदा तू, और तेरी ये ख़ुदाई भी,
हासिल भी तू नाहासिल भी जैसे मेरी तनहाई भी।
ये हवा भी, ये पानी भी , ये आग भी आकाश भी,
कि मेरे एक जिंदा होने में हीं छुपी तेरी रहनुमाई भी।
सुकून भी मिलता है मुझे तो तेरी इबादतों के हीं बदौलत
मगर सवालों के घेरे में अक्सर होती है तेरी परछाई भी।
नज़र के सामने भी है और दिल के करीब भी ,
पर तू ही दर्द का सबब, और इस मर्ज की दवाई भी।
तुझे समझने की कोशिश में खो जाता हूँ अक्सर,
कि तू है,तेरे जहाँ में मै भी और तुझसे जुदाई भी।
अजीब है ऐ ख़ुदा तू, और तेरी ये ख़ुदाई भी।
अजय अमिताभ सुमन