अजीब शै है ये आदमी
एक अबोध बालक
डॉ अरुण कुमार शास्त्री – दिल्ली
arun kumar shastri
दर्द देता है फिर दवा देता है।
बहुत अजीब शै है ये आदमी।
क़र्ज़ देकर के कज़ा देता है।
इसकी हाँ का पता न ही इसकी ना का पता।
आज देता है सहारा कल उसी को हटा लेता है।
दर्द देता है फिर दवा देता है।
बहुत अजीब शै है ये आदमी।
क़र्ज़ देकर के कज़ा देता है।
अपनी छोटी सी इस जिंदगानी में।
रोज़ – रोज़ ये सैंकड़ों की बद्दुआ लेता है।
दर्द देता है फिर दवा देता है।
बहुत अजीब शै है ये आदमी।
क़र्ज़ देकर के कज़ा देता है।
कभी बन जाता है बुद्ध तो कभी राम और कृष्ण ये।
कभी – कभी तो नज़र आता है राधा सा।
कभी करता है अपराध बड़े भीषण – भीषण।
कभी आता है सीधा सादा और सरल।
इसकी हाँ का पता न ही इसकी ना का पता।
आज देता है सहारा कल उसी को हटा लेता है।
अपनी छोटी सी इस जिंदगानी में।
रोज़ – रोज़ ये सैंकड़ों की बद्दुआ लेता है।
शक़्ल इसकी देख कर लगता शिशु सा भोला भाला।
रंग इसका चटक गोरा है बाहर से बिलकुल।
पास जाओ तो निकलेगा एकदम काला।
दर्द देता है फिर दवा देता है।
बहुत अजीब शै है ये आदमी।
क़र्ज़ देकर के कज़ा देता है।
बात करता है तो जीसस कभी सुकरात लगता है।
अल्लादीन की तो गिहारबी ख़लिस औलाद लगता है।
गिरगिट के माफ़िक कब रंग बदल जाए इसका।
इस बात का एहसास न अंदाज़ लगता है।
दर्द देता है फिर दवा देता है।
बहुत अजीब शै है ये आदमी।
क़र्ज़ देकर के कज़ा देता है।
अपनी छोटी सी इस जिंदगानी में।
रोज़ – रोज़ ये सैंकड़ों की बद्दुआ लेता है।