अज़ान और आरती -1
एक शाम मै अपने एक मित्र से एक खास मुद्दे पर मशविरा करने को अपने घर से निकला। जिससे मिलने को मै काफी दिनो से सोच रहा था। लेकिन व्यस्तता के चलते मुलाकात नहीं हो पा रही थी। कुछ मुद्दो पर चर्चा करना अत्यंत आवश्यक हो गया था। यही सब सोच विचार कर, आज मैं अपने आॅफिस का काम भी जल्दी निपटाकर घर आ गया था। मैं अपनी फटफटिया लेकर अपने उसी अंदाज मे चल पड़ा। मैने थोड़ा जल्दी पहुँचने के चक्कर मे आज एक शोर्ट कट लिया। बैसे भी आये दिन लगने वाले ट्रैफिक जामो मे मुझे आज तो नही फसना था। इसी के चलते मैं मैन रोड को छोड़, शहर की उन गलियों से गुजरा, जहाँ से मेरी दूरी कम हो जाती। और जिसका नक्शा मैं घर से निकलने के पहले ही अपने दिमाग मे बना चुका था। उसी नक्शे पर चलने के दौरान, मै अपने शहर के एक मौहल्ले से होकर गुजरा। मै अपनी फटफटिया पर, अपने मे ही मस्त, अपनी कुछ परेशानीयो से निपटने के गुनताड़े मे मशरूफ था। मुझे उस समय सिर्फ जल्दी पहुँचना था। मै रास्ते में बिना किसी पर ध्यान दिये बड़ी तेजी मे आगे बड़ा चला जा रहा था। समय अपनी चाल से चल रहा था। और मै समय की चाल से आगे निकलने का मन बनाये हुये था। आज मै अपनी फटफटिया का एक्सीलेटर कुछ ज्यादा ही खीच रहा था। मेरी रफ्तार इन गलियो को देखते हुये आज कुछ ज्यादा ही थी। और मै इस सबसे बेखबर चला जा रहा था। अचानक किसी आवाज ने मेरे दिमागी घोड़ों की चहलकदमीयों मे खलल डाली। दूर से ही मेरे कानों में एक मस्जिद से आने वाली अज़ान की आवाज आ रही थी। मग्रिव की नमाज़ का बक्त हो चला था। जैसे-जैसे मै आगे वढता जा रहा था, गली संकरी होती चली जा रही थी। यह देख अव मैने अपनी रफ्तार कम कर ली। मेरे कानों मे अज़ान की आवाज और जोर से गूँजती जा रही थी। रास्ते मे दिन के आम समय की अपेक्षा चहल पहल कम ही नजर आ रही थी। वहाँ रहने वाले मुस्लिम समुदाय के लोग जो रास्ते मे मिले वे या तो अपने अपने कामों में मशरूफ थे या नमाज़ के लिए मस्जिद की ओर चले जा रहे थे।
अब मै उन तंग गलियों से बड़ा सम्हल कर आगे बढ़ रहा था। क्यों कि वे तंग गलियाॅ थोड़ी-थोड़ी दूरी पर तीखे मोड़ो से भरी पड़ी थी। अचानक वही हुआ, जिसकी आशंका मेरे मन मे कही ना कही उठ रही थी। एक मोड़ पर तेजी से दौड़ते हुए कुछ बच्चे मेरे सामने आ गये। उन बच्चों का इतनी तेजी से मेरे सामने आना, मेरी सांसे थामने के लिये काफी था। इससे पहले कि मैं कुछ सोच पाता, एकाएक मै अपनी मोटरसाईकिल के ब्रेक पर चड़ गया। मेरी मोटरसाईकल का पहिया जोर से चींखा। मेरे पहिये की चींख, रोड पर रगड़ने से उत्पन्न हुई थी। मेरी मोटरसाईकिल गली के मोड़ से पहले लगे बिजली के खम्बे से पहले बड़ी मुस्किल से रूकी। अब कही जाकर मेरी जान मे जान आयी। वे बच्चे दुनिया दारी को भूल उन टेड़ी-मेड़ी गलियों मे अपने छुपे हुए साथियों को खोजते हुये अपनी एक अलग ही धुन में भाग रहे थे। अपने साथी को पकड़ने के बाद जव वो खिलखिलाकर हॅसे तो उन बच्चो की खिलखिलाहट देख, छड़िक मात्र के लिये मेरे चेहरे पर भी मुस्कान आ गयी। वे अपने कोमल मन से उत्पन्न चंचल खुशियों को एक दूसरे पर उड़ेलते हुये, उस माहौल को अपनी खिलखिलाहटो से शराबोर करते हुये मेरे वगल से गुजर गये। बच्चो के गुजरने के साथ-साथ मै भी अपने बचपन की स्मृतियो को छू कर वर्तमान मे लौट आया। बच्चो की खुशी को महसूस कर, मेरी उलझने तो जैसे हवा हो गयी थी।
रास्ते में अब नमाज़ी लोगों की संख्या ज्यादा ही दिख रही थी। शायद, मै लगभग मस्जिद के पास ही पहुँच गया था। मुझे अब ये लग रहा था की, मैने ये रास्ता चुन कर बड़ी भूल कर दी है। इससे अच्छा तो मै मैन रोड से ही निकल जाता, तो ठीक रहता। मै सामान्य स्पीड से भी नहीं चल पा रहा था। कहाँ मै जल्दी पहुँचने के विचार में था, यहाँ मुझे और देर हो रही थी। की तभी मेरे कानों मे हल्की सी एक और आवाज भी आने लगी थी। ये आवाज कुछ टन टन टन टन की तरह थी। इन आवाज ने मेरी उत्सुक्ता को बड़ा दिया। मस्जिद के सामने पहुंचने पर टन टन की आवाज अज़ान के साथ मिलकर और अधिक तीव्रता से मेरे कानों तक आ रही थी। इन आवाजो से मैं भावबिभोर हो रहा था। मै ये जानने के लिये बड़ा बेचैन हो रहा था कि ये आवाजे आखिर आ कहाँ से रही है। क्यो कि मुस्लिम बाहुल्य इलाके मे ऐसी आवाज का होना अप्रत्याशित था। जो कि सामान्य बात नही है। मै मस्जिद से अभी दो कदम ही आगे निकल पाया था। एकाएक ही तस्बीर साफ हो गयी। ये टन टन की आवाज मस्जिद से लगभग 10 कदम की दूरी पर स्थित एक मन्दिर से आ रही थी। मेरी नजरो के सामने एक मन्दिर था। मंदिर मे आरती हो रही थी। और मै मंदिर मे हो रही मनमोहक आरती से अपने आप को आनंदित महसूस कर रहा था। अज़ान और मदिंर में हो रही आरती की आवाज, मेरे कानों में एक साथ आ रही थी।
शेष….