अज़ल
मैं आज कल अजल में
अज़ल के बाॅंहों में इश्क की बस एक कहानी है
हिज़्र के बाॅंहों में टपकता अश्के यार निशानी है
~ सिद्धार्थ
दिन भागते निकल जाता है रातें जागते कट जाती हैं
इक तुम्हारे याद में न रात सोती है न दिन मुस्काता है
~ सिद्धार्थ
भुला रहे हो हमको, हमसे किस तरह भुलाये जाओगे
दीया जलेगा आंगन में तुम मन को रौशन कर जाओगे
` सिद्धार्थ
अज़ल की वो पहली सी मुहब्बत तुम में देखी थी
ऐ यार सुबह की धूप शाम की छांव तुम में देखी थी
~ सिद्धार्थ
अज़ल