अजब-गजब इन्सान…
अजब-गजब इंसान…
नहीं किसी की फिक्र इन्हें, बस
अपने सुख का ध्यान।
खान गुणों की समझें खुद को,
बाँटे सबको ज्ञान।
हाँ में हाँ जो कहता इनकी,
देते उसको भाव।
बोल सत्य के लगते तीखे,
करते उर पर घाव।
सुख-दुख अपने गाते सबसे,
दें न किसी पर कान।
भौतिक सुख के साधन ही बस,
आते इनको रास।
सीधे-सरल-शरीफों का ये,
करते नित उपहास।
हुआ नहीं अग-जग में पैदा,
इनसे बड़ा महान।
तनिक लाभ की आस लिए जो,
जाता इनके पास।
गाँठ कटाकर वो भी अपनी,
आता लौट उदास।
लिए दुकानें बैठे ऊँची,
पर फीके पकवान।
करते मुँह खुलने से पहले,
बोली सबकी बंद।
क्या कहना, कितना कहना है,
इनकी चले पसंद।
तुच्छ जताने में सबको ये,
समझें अपनी शान।
अपनी कही बात को ही ये,
पल में जाते भूल।
कोई सच समझाए यदि तो,
चुभते इनके शूल।
चूल हिलाते आते सबकी,
आता ज्यों तूफान।
जान लगा दो इनकी खातिर,
मानें कब अहसान।
वक्त पड़े पर काम न आते,
बन जाते नादान।
अपनी कमियाँ लादे सर पे,
चलते सीना तान।
देखे कितने बंदे जग में,
बड़े एक से एक।
पर हर इक खूबी का जैसे,
है इनमें अतिरेक।
उपमा इनकी दूँ मैं किससे,
मिले नहीं उपमान।
खान गुणों की समझें खुद को,
बाँटे सबको ज्ञान।
अजब-गजब इंसान !
© डॉ. सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद ( उत्तर प्रदेश )
” मनके मेरे मन के” से