“अच्छे दिन”
बदन के वस्त्र खंडित हो चलें हैं फिर भी अपने लाज को बस में कियें हैं धुप से जर -जर पसीना बह रहा हैहाल सब बेहाल सारा हो रहा है फिर भी देखो आश है ” अच्छे दिनों ” की प्यास है !@डॉ लक्ष्मण झा “परिमल “
बदन के वस्त्र खंडित हो चलें हैं फिर भी अपने लाज को बस में कियें हैं धुप से जर -जर पसीना बह रहा हैहाल सब बेहाल सारा हो रहा है फिर भी देखो आश है ” अच्छे दिनों ” की प्यास है !@डॉ लक्ष्मण झा “परिमल “