अच्छी पत्नियां
देखती हूं,
बहुत अच्छी पत्नियां बनी
वो सारी लडकियां
जिनके प्रेम प्रसंग
चर्चित रहे
कालेज के जमाने में।
अपने बीते दिनों के अनुभव से
सीख लिया था उनने
पुरुष को जीतना।
जान लिया उनने
पुरुष का मन।
वो लडकियां
मेरी तरह स्वयं पर
निर्दयी न थीं।
अपने मन के परिंदों को
उडने दिया उनने
उनमुक्त ,
बहने दिया खुद को
प्यार के सागर में
निर्विरोध।
मेरी तरह खुद पर
बंदिशें न लगाई उनने।
बांधा नही खुद को उनने
आदर्श की सीमाओं में।
और इसलिए वो सब
आज बहुत अच्छी पत्नियां हैं।
वो नही रूठती हैं बात बात पर
अपने पति से
क्योंकि रूठने मनाने
के सिलसिले
बहुत देखे हैं उनने
अपने प्यार के दिनों में।
अब वो अच्छी गृहिणी बन
देखती हैं परिवार को,
संभालती हैं बच्चों को
और समझती हैं
घर संसार को ।
मेरी तरह खुद को प्रेमिका
और पति को प्रेमी
समझने की गलती
नही की उनने ।
इसलिए वो सब बहुत
अच्छी पत्नियां हैं।
और मैं
सिर्फ एक
हारी हुई पत्नी
और टूटी हुई प्रेमिका।
शायद प्रेम को
पहले ही जान लिया होता
तो मैं भी होती
एक बहुत अच्छी पत्नी ।