“ अच्छा लगे तो स्वीकार करो ,बुरा लगे तो नज़र अंदाज़ करो “
डॉ लक्ष्मण झा “ परिमल “
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साहित्यिक परिचर्चाओं में शालीनता का महत्व होता है ! मतांतर वहाँ भी व्याप्त होते हैं ! समीक्षा और विश्लेषण का दौर चलता है ! परंतु सब शिष्टाचार के परिधि में प्रदक्षिणा करते नजर आते हैं ! और इसका पटाक्षेप भी शिघ्राति -शीघ्र हो जाता है ! भाषा ,शब्दावली और अंदाज अधिकांशतः कर्णप्रिय होते हैं !
पर राजनीति की परिचर्चा शीघ्र ही महाभारत का रूप ले लेता है ! विचित्र – विचित्र शब्दों का प्रयोग होने लगता है ! जब कभी किसी ने अपने विचारों को शालीनता से लोगों के समक्ष रखना चाहा ! उसकी बातों को ना देखा ना पढ़ा नाहीं मनन किया और उनके विरुद्ध अग्नि वर्षा करने लगे ! अमर्यादित भाषा का प्रयोग कर -करके अपनी छवि ही नहीं समस्त विचारधाराबिलम्बिओं की छवि को वे धूमिल करने लगते हैं !
हम यदि गौर से उनलोगों का अवलोकन करेंगे तो इस तरह के लोग हरेक समुदायों में पाए जाते हैं ! पर यह कहना अनुचित नहीं होगा कि ऐसे महारथी विशेषतः एकमात्र प्रजाति के लोग ही हैं जिनकी भाषाएं ,जिनका शब्द और अगरिमामयी भंगिमा से लोगों को स्तब्ध कर जाते हैं ! गाली -गलोज के अमोघ -अस्त्रों का प्रयोग करते हैं ! उनके गाँडीवों में अशुद्ध शब्दों का भंडार है ! उन्हें सारा विश्व असभ्य कहने से कभी कतराते नहीं हैं !
चलो मान लिया सबके अपने -अपने विचार होते हैं और अपने विचारों को व्यक्त करना हमारा मौलिक अधिकार है ! आलोचना नहीं होगी तो लोग निरंकुशता के चोलों को पहन लेंगे ! ऐसे विचारधाराओं के लोगों से ना जुड़ें जिनके विचार में सामंजस ना हो ना सम्मान हो ! विचारों के मेल से ही मित्रता फलती -फूलती है ! दो ग्रहों के प्राणी कभी एक साथ रह नहीं सकते ! और रहना है तो इस मंत्र को ना भूलें “ अच्छा लगे तो स्वीकार करो ,बुरा लगे तो नज़र अंदाज़ करो !“
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डॉ लक्ष्मण झा ” परिमल ”
साउंड हेल्थ क्लिनिक
एस .पी .कॉलेज रोड
दुमका
झारखंड
भारत