अच्छा लगना
मुझे अच्छा लगता है जब
मैं सूर्योदय से पहले उठ जाती हूं
गंगा किनारे सीढ़ियों में सूर्य उदय के लिए
आकाश की ओर टकटकी लगा कर देखती हूं
मुझे अच्छा लगता है जब
मैं चिड़ियों की आवाज के साथ कुछ गुनगुनाती हूं
कभी तितलियों के लिए अपनी बाहें फैलाती हूं
मुझे अच्छा लगता है जब
मैं अपनी बगिया से पुष्प चुन-चुन कर
शिवलिंग पर चढ़ाती हूं
नित्य नए ढंग से पुष्प लगाकर घंटों निहारती हूं
मुझे अच्छा लगता है जब
सुबह के कुछ क्षण अपने लिए निकाल कर
योगा करती हूं और ओम ध्वनि में घुल सी जाती हूं
मुझे अच्छा लगता है जब
मैं अंतर्मन से कोई कविता बनाती हूं
और अनकही बातें कविता में कह जाती हूं
मुझे अच्छा लगता है जब
अब उम्र बढ़ने के साथ प्रेम परिपक्वता लिये
नजदीकियों और बढ़ जाती है
एक दूसरे के बिना जिंदगी नहीं चल पाती है
मौलिक एवं स्वरचित
मधु शाह (१७-१०-२२)