अग्निवीर
****** अग्निवीर *******
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अग्निवीर का देखो तो दम,
चार वर्ष नौकरी का गम।
कैसी योजना कैसा मंजर,
मैं पर भारी हो गया है हम।
चारों और देखी आगज़नी,
सूखी आँखें हो गई हैं नम।
युवाओं के नैनों में आँसू।
गुस्सा भी हो रहा न कम।
राजनीतिक चढ़ गया रंग,
उल्लू सीधा करते हरदम।
मनसीरत समझ न पाया,
कौन दुश्मन कौन हमदम।
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)