अगर आपके पास निकृष्ट को अच्छा करने कि सामर्थ्य-सोच नही है,
अगर आपके पास निकृष्ट को अच्छा करने कि सामर्थ्य-सोच नही है,
तो उत्कृष्ट मे होना या रहने दोनो कि ही चेष्टा करना व्यर्थ है।
अगर आपके पास निकृष्ट को अच्छा करने कि सामर्थ्य-सोच नही है,
तो उत्कृष्ट मे होना या रहने दोनो कि ही चेष्टा करना व्यर्थ है।