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17 Feb 2024 · 1 min read

अखिला कुमुदिनी

कल-कल तटिनी के तट पर कल,
अखिला कुमुदिनी रहती थी,

पल-पल मधुरिम स्वर में तब ही,
कूका कुहुकिनी करती थी,

यादों में तट कालिंदी के,
उभरे दर्शन सारे आज-

छल-छल छलके मधुबन नयना,
मधुबनी कभी महकती थी।

संतोष सोनी “तोषी”
जोधपुर ( राज.)

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