अखिला कुमुदिनी
कल-कल तटिनी के तट पर कल,
अखिला कुमुदिनी रहती थी,
पल-पल मधुरिम स्वर में तब ही,
कूका कुहुकिनी करती थी,
यादों में तट कालिंदी के,
उभरे दर्शन सारे आज-
छल-छल छलके मधुबन नयना,
मधुबनी कभी महकती थी।
संतोष सोनी “तोषी”
जोधपुर ( राज.)
कल-कल तटिनी के तट पर कल,
अखिला कुमुदिनी रहती थी,
पल-पल मधुरिम स्वर में तब ही,
कूका कुहुकिनी करती थी,
यादों में तट कालिंदी के,
उभरे दर्शन सारे आज-
छल-छल छलके मधुबन नयना,
मधुबनी कभी महकती थी।
संतोष सोनी “तोषी”
जोधपुर ( राज.)