अखबार
सुबह चाय के संग ही, पढ़ते हैं अखबार।
सभी घरों में है अहम,इसका किरदार।। १
जानकारियों से भरा, रहता था अखबार।
भरे हूए है अब मगर, केवल कलुष विचार। । २
बना लिया अखबार ने, खबरों को व्यापार।
रोज नचाती अब इसे, अँगुली पर सरकार।।३
खबरें ऐसी है छपी, जल रहा अखबार।
नफरत की चिंगारियाँ, इसके उर अंगार।। ४
ग्रीवा में लटके हुए, नफरत की तलवार।
सुलग रहा है देश भी, सुलग रहा अखबार। ५।
दंगे दुर्घटना यहाँ, फैला व्यभिचार।
ऐसी खबरें बाँच कर, शर्मिंदा अखबार ।६।
अखबारों की सुर्खियाँ, मचा रहें हैं शोर।
अपराधों से हैं भरे,भींगे नयना कोर।। ७
कत्ल,डकैती,चोरियाँ, हिंसा, भ्रष्टाचार।
दिखता अब अखबार में, लाशों का बाजार।।८
झूठ कपट पाखंड से,,भरा हुआ है अंक।
अब बिच्छू अखबार है,चुभती खबरें डंक।९
कहीं जली है बेटियाँ,फेंका है तेजाब।
अखबारों में है लिखा,लुटा गया हिजाब।। १०
फाँसी पर लटके कृषक,फसलें हुई तबाह।
भरा हुआ अखबार में, मासूमों की आह।।११
बाँट रहे हैं देश को, छुपे हुए गद्दार।
हत्या दंगा लूट से, भरा हुआ अखबार।। १२
स्तंभ देश का जो रहा, दृढ़ थे उच्च विचार।
बेच दिया ईमान को,लेकिन अब अखबार।।१३
बाँध लिया है बेड़ियों ,इसके उर उद्गार।
सत्य भूल कर झूठ को, लिखता अब अखबार।। १४
पढ़े लिखे धरने करे,बुद्धि हुई मंद।
खबर छपी अखबार में, सड़कें राहें बंद।। १५
कब बदलेगी ये खबर, कब बदले तस्वीर।
अखबारों के पेज पर, बदले शब्द ज़खींर।।१६
-लक्ष्मी सिंह
नई दिल्ली