अक्सर….
अक्सर….
इन भीगी शामों में
पुराने ख्याल उमड़ आते हैं
बादलों की गरज से,
आसमानी बिजली की चमक से
हौले हौले गहरे स्याह होते हुए
विगत को देखता हूँ
तो अब न कोई अफसोस…
न कुछ खोने का दुख,
न कुछ हासिल न कर पाने का
कुछ देर के लिए
क्षितिज के एक छोर पर
बादलों से बनती
धुंधली सी आकृति
को देखता हूँ मैं…
जानता हूँ क्षणिक है…
पर कुछ देर ही सही
निहारना चाहता हूँ उसे
यूँ ही अपलक, तब तक
खो न जाए वो दूसरे छोर पर
हिमांशु Kulshrestha