अक्षर बीज
अक्षर बीज
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विचार!
ज्यों बहती नदी सधार!
पत्थरों के पंख पर-
चढ़ दौड़ी जैसे नदी!
अक्षुण्ण! अजस्र!! वेगवती!!!
वाक्य!
हिलते-डुलते शब्दों का गठबंधन!
तह पर तह ढाली गई नींव!
विचारों के शिलाखंड! अखंड!!
शब्द!
वर्णों के जोड़ नहीं,
भावों के इशारे हैं।
ना हमारे हैं, ना तुम्हारे हैं।
अक्षर!
परम ब्रह्म-
शाश्वत-
बीज –
समस्त वाचिक संसार का!
पाप का, पुण्य का!
सार का, असार का!
अक्षर!
बीज –
शब्द का,
वाक्य का,
संसार के समस्त विवाद का!