अकेली रही जिन्दगी
गीतिका
~~~~
स्वप्न देखे मगर साथ मिलता नहीं, आज फिर क्यों अकेली रही जिन्दगी।
मुस्कुराती रही देख कर हाल अब, थी कभी खूब खेली रही जिन्दगी।
चाहते हैं सभी फूल खिलते रहें, खुशबुओं को हमेशा बिखेरें सहज।
पतझड़ों में नहीं खिल सकी क्या करें, सूखती फिर चमेली रही जिन्दगी।
सह लिए कष्ट हँसते हुए थे बहुत, धैर्य छोड़ा नहीं था कभी राह में।
साथ जिसने दिया बिन थके बिन रुके, खूब प्यारी सहेली रही जिन्दगी।
साथ सबने दिया खूब मिलकर रहे, भूलकर भी निराशा न आई कभी।
आस के फूल खिलते रहे सामने, मुस्कुराती नवेली रही जिन्दगी।
सांस के साथ आगे बढ़ा नित्य है, सिलसिला ये कभी भी नहीं रुक सका।
हर समय प्रश्न उठने लगे जब कभी, बूझने को पहेली रही जिन्दगी।
~~~~
-सुरेन्द्रपाल वैद्य