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9 Sep 2023 · 1 min read

अकेला खुदको पाता हूँ.

…अकेला खुदको पाता हूँ..
ऐ ख़ुदा,
ना आसमान के सितारे गिन पाता हूँ,
इम्तिहान मे कामीयाब कहलाता हूँ,
ना चाँद से मुलाकात करता हूँ,
ना अपनो को समझपाता हूँ।
मैं खुद को अकेला पाता हूँ
ऐ खुदा, तु हमेशा रात मे बात करता मुझसे, समझाता मुझको,
फिर क्यू ,आज खफा सा लगता खुदसे
आंगन मे फुल खिले थे,
वह भी मुरझा से गये लगता है,
ऐ ख़ुदा कामयाब नही बनसकते ऐसा लगता है,
तोड देंगे आँचल के प्यार की उम्मीद
ना जाने यह दिल यह बात पर सहमा सा रहता है ।।
ऐ ख़ुदा खामोश सा खुदसे रहता हूँ, फिर भी अल्फाजोसे क्यू झगडता हूँ। करना है कुछ जिवन में,
आगे बढ़ना है,
तो फिर कदम क्यू रुका देता हूँ..
नौशाबा जिलानी सुरिया

Tag: Best Poem
1 Like · 489 Views

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