अकेला खुदको पाता हूँ.
…अकेला खुदको पाता हूँ..
ऐ ख़ुदा,
ना आसमान के सितारे गिन पाता हूँ,
इम्तिहान मे कामीयाब कहलाता हूँ,
ना चाँद से मुलाकात करता हूँ,
ना अपनो को समझपाता हूँ।
मैं खुद को अकेला पाता हूँ
ऐ खुदा, तु हमेशा रात मे बात करता मुझसे, समझाता मुझको,
फिर क्यू ,आज खफा सा लगता खुदसे
आंगन मे फुल खिले थे,
वह भी मुरझा से गये लगता है,
ऐ ख़ुदा कामयाब नही बनसकते ऐसा लगता है,
तोड देंगे आँचल के प्यार की उम्मीद
ना जाने यह दिल यह बात पर सहमा सा रहता है ।।
ऐ ख़ुदा खामोश सा खुदसे रहता हूँ, फिर भी अल्फाजोसे क्यू झगडता हूँ। करना है कुछ जिवन में,
आगे बढ़ना है,
तो फिर कदम क्यू रुका देता हूँ..
नौशाबा जिलानी सुरिया