अकल की दुकान
उन्होने सोचा एक दिन की वो तो है अकल की खदान.
फिर क्यू ना खोली जाये एक अकल की दुकान.
बात उनके भेजे मे ऐसे ये समाई.
की ठाणली उन्होने करेंगे इससे ही कमाई.
अनुभव का आपणा ये बेचकर भंडार
खोलेंगे हम अपनी किस्मत का द्वार..
बेचकर अपनी अकल हम होंगे मालामाल.
लोग भी हमारी अकल लेकर होंगे खुशहाल.
सोच सोच कर उन्होने अपनी अक्कल को खंगाला.
इसमे ही निकलने लगा उनकी अकल का दिवाला.
फिर सोच पर लगाया उन्होने अपनी लगाम.
और खोल ही लि एक अकल की दुकान.
दुकान पर उन्होने लगाया एक बडा सा फलक.
लिखा उसमे उन्होने की यहा अकल मिलेंगी माफक.
बहुत दिनो तक दुकानपर वे मारते रहे झक.
लेकिन दुकान पर कोई फटका नही ग्राहक.
दुकानपर वे होते रहे बहुत ही बेजार.
फिर भी वहा कोई आया नही खरीददार.
कहा हुई है गलती वह कुछ भी समझ ना पाये.
फिर भी ग्राहक के आस मे कुछ दिन और लगाये.
गलती की खोज में उन्होने अकल अपनी दौडाई.
तब कही जाकर बात उनके भेजे मे समाई.
कोई नही चाहता अनुभव बना बनाया.
हर किसी को चाहिये अनुभव अपना अपनाया.
इस तरह से हुआ उनके अनुभव में एक इजाफा.
और दुकान का उन्होने किया तामझाम सफा.