अंहकार तजो,
सघन वृक्ष ही सदा उखड़ते, वेत सलामत सदा रही है,
सहज नम्रता और समर्पण, कारण बनता बात सही है l
पर्वत को भी चीर सकी है, सरिता अपनी राह बनाती,
अहंकार को तजो,सफलता मिलती है,यह बात कही है l
सघन वृक्ष ही सदा उखड़ते, वेत सलामत सदा रही है,
सहज नम्रता और समर्पण, कारण बनता बात सही है l
पर्वत को भी चीर सकी है, सरिता अपनी राह बनाती,
अहंकार को तजो,सफलता मिलती है,यह बात कही है l