Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
23 Apr 2023 · 10 min read

अंबेडकरवादी विचारधारा की संवाहक हैं श्याम निर्मोही जी की कविताएं – रेत पर कश्तियां (काव्य संग्रह)

अंबेडकरवादी विचारधारा की संवाहक हैं श्याम निर्मोही की कविताऍं – “रेत पर कश्तियाॅं” (काव्य संग्रह)

पुस्तक – रेत पर कश्तियाॅं (काव्य संग्रह)

कवि – श्याम निर्मोही

प्रकाशक – कलमकार पब्लिशर्स प्रा. लि.दिल्ली

पृष्ठ -160, मूल्य – 250

समीक्षक – आर एस आघात

कविता साहित्य का एक विशाल विषय है, इतिहास जितना पुराना और कहीं भी मौजूद है, धर्म मौजूद है, संभवतः—कुछ परिभाषाओं और लेखों में कविता का उल्लेख किया गया है इसके अंतर्गत—स्वयं भाषाओं का आदिम और प्राथमिक रूप । इस लेख का अर्थ केवल कविता के कुछ गुणों का सामान्य रूप से वर्णन करना नहीं है बल्कि यह दिखाने की कोशिश कर रहा हूॅं कि कविता के माध्यम से कवि द्वारा काव्यात्मक विचारों की क्रांति को कुछ अर्थों में मन के स्वतंत्र रूप को दर्शाया गया है। स्वाभाविक रूप से, न तो हर परंपरा और न ही हर स्थानीय या व्यक्तिगत भिन्नता को शामिल किया जा सकता है – या इसकी आवश्यकता है – लेकिन कवि ने अपने काव्य संग्रह में सम्मिलित कविताओं के माध्यम से सामाजिक कुरीतियों, सामाजिक भेदभाव, जाति के नाम पर लोगों का उत्पीड़न, एक वर्ग विशेष द्वारा दूसरे वर्ग विशेष के प्रति घृणा के भावों को विभिन्न सम-सामयिक घटनाओं पर आधारित उदाहरणों से दिखाने की कोशिश की है ।

देश की आबादी का एक विशेष हिस्सा आजादी के 75 वर्ष बाद भी खुलकर रह नहीं सकता, अपने सामाजिक कार्यक्रम आयोजित नहीं कर सकता, एक व्यक्ति मूॅंछ नहीं रख सकता, एक जाति का व्यक्ति अपनी शादी में घोड़ी पर बैठकर बारात नहीं निकाल सकता , एक वर्ग विशेष की महिलाऍं खेतों में स्वतंत्र होकर पशुओं के लिए चारा नहीं ला सकती । एक वर्ग विशेष का व्यक्ति अच्छे कपड़े नहीं पहन सकता क्योंकि उस गाॅंव के लोगों को यह नागवार गुजरता है । एक जाति विशेष का बच्चा पानी के घड़े को नहीं छू सकता, एक वर्ग विशेष के लोग अपने महापुरुष की मूर्ति प्रशासन की अनुमति के बगैर नहीं स्थापित कर सकते जबकि गाॅंव, कस्बे, शहर, जिला, प्रदेश में जिधर देखो उधर आपको अनगिनत मंदिर मिल जायेंगे ।

कवि अपने काव्य संग्रह की पहली कविता के माध्यम से बहुजन समाज में आए बिखराव को दर्शाता है कि हम आज अनगिनत टुकड़ों में बंटते जा रहे हैं जिसका फायदा हमारा सामाजिक दुश्मन उठा रहा है ।

कवि अपनी कविता – ‘फिर से चलें उन पगडंडियों पर’ की अंतिम पंक्ति में लिखता है कि
“आओ फिर से हम भी चलें
उन रास्तों पर
उन पगडंडियों पर
उन पदचिह्नों पर
जिन पर
कभी हमारे पुरखे….
गौतम बुद्ध, बाबा साहेब और दीनाभाना व
कांशीराम चले थे ।”

कवि अपनी कलम के माध्यम से समाज में फैली सामाजिक कुरीतियों के खिलाफ लिखता है और लेखनी से उन्हें सतर्क रहने की सलाह देता है कि…

“ये कुंठा
ये घृणा
ये नफ़रत ,
ये छुआछूत
ये भेदभाव
ये अलगाव
सब दिखाई देता है मुझे
अंधा नहीं हूॅं मैं….

आप मेरे समाज के प्रति चाहे कितनी भी नफरत करो, घृणा रखो, छुआछूत, भेदभाव,अलगाव रखो लेकिन ये मत समझो कि मुझे पता नहीं है । मैं अंधा नहीं हूॅं, मुझे सब कुछ दिखाई देता है और एकदिन आपके इन कुकृर्त्यों का ज़बाब अवश्य दूंगा ।

कवि सदैव अपने आसपास चल रहे घटनाक्रमों के आधार पर ही कविताओं का लेखन करता है जिसमें वह अपने दिनचर्या से लेकर समाज में हो रहे बदलाव पर अपनी कलम को चलाता है ऐसे ही एक प्रसंग को कवि ने अपनी कविता – ” मैं बच गया ” में किया है । कवि लिखता है कि…

“बचपन में
हमारे मोहल्ले के
पास भी,
कोई शाखा लगती थी ।
जहाॅं पर
कई खेल खेले जाते थे
कई गीत गाए जाते थे
लाठी से करतब
दिखाए जाते थे
माॅं भारती के आगे
शीश झुकाए जाते थे ।”

इस तरह कवि आर. एस. एस. और उसके अनुसंगी संगठनों के बारे में लिखता है कि मेरे घर के पास भी ये लोग शाखाऍं लगाते थे जिनमें अधिकतर मेरे बहुजन समाज के युवाओं को भरमाया जाता था । कवि इन शाखाओं से सचेत रहते हुए, अपने आप को अंबेडकरवादी चेतना के प्रति सजग रहता है इसलिए कवि के बारे में कह सकते हैं कि वे अंबेडकरी विचारों के प्रति युवा अवस्था से ही सजग एवं जागरूक रहे हैं।

इस काव्य संग्रह में कवि ने अपनी कलम को जातीय हिंसा व अत्याचार के खिलाफ भी बहुत सुंदर तरीके से चलाया है जिसमें उन्होंने लिखा है कि किस प्रकार सवर्ण जाति के लोग जाति के नाम पर गालियाॅं देते हैं, जाति के नाम पर अत्याचार करते हैं और उस जाति के अनुसार ही व्यवहार करते हैं । जब कवि को ये समझ आता है तो वह किस प्रकार उन व्यक्ति, समूह, संस्थाओं का सामना बहुत ही सुलझे हुए ढंग से करता है । कवि अपनी कविता “तुम्हें याद है न!” में लिखते हैं …

“जब मैं
तुम्हारा प्रतिकार कर रहा था
तुम्हारा विरोध कर रहा था
तुम्हारी व्यवस्था के खिलाफ़ लड़ रहा था
तुम्हारे दकियानूसी नियमों को भंग कर रहा था ।

तब
तुमने मुझे
पहली बार भंगी कहा था ।
सच कहूॅं तो
तब,
तुमने मुझे गाली दी थी ।
और यह गाली ही
मेरी पहचान बन गई ।”

अंतिम पंक्तियों में कवि इन जातीय दकियानूसी सोच के लोगों को ललकारता है और अपने महापुरुष बाबा साहेब के प्रति कृतज्ञता जाहिर करते हुए लिखता है कि…

“आज फिर
बाबा साहेब के कर्म से
फिर से तुम्हें ललकार रहा हूॅं ।
तुम्हें तुम्हारी औकात याद दिला रहा हूॅं
तुम्हें याद है न !

कवि के लेखन की सौंदर्यता और उसके द्वारा कविताओं में सृजित शब्दों के सौंदर्य शास्त्र को हम कवि की रचना ” सुलगते शब्द” से समझ सकते हैं कि कवि अपनी कलम को किस प्रकार स्वाभिमान के साथ आक्रोशित भाव में चला रहा है जैसे:-

“दबे हुए आक्रोश को बाहर लाने के लिए
अपने खोए स्वाभिमान को पाने के लिए।
भटकते हैं शब्द…
सुलगते हैं शब्द…

सड़कों पर उथल -पुथल मचाने के लिए,
वंचितों को अधिकार दिलाने के लिए।
मचलते हैं शब्द…
सुलगते हैं शब्द….”

एक रचना में कवि ने अपनी कलम को मुंशी प्रेमचन्द की कहानी – कफ़न के पात्रों पर चलाते हुए सवाल खड़े किए हैं और प्रश्नवाचक चिह्न लगाते हुए लिखा है कि कफ़न की कहानी के पात्र घीसू और माधव जैसे संवेदनहीन दलित चरित्र मैंने अपने जीवन में आज तक नहीं देखे हैं । इस प्रकार कवि अपनी लेखनी के माध्यम से अपने समाज के पूर्वतः चरित्र चित्रण को झुठलाता है कि मेरे समाज के बारे में काल्पनिक चरित्र चित्रण किए गए और समाज को बदनाम किया है । कवि अपनी कविता “मैंने नहीं देखे ऐसे किरदार….” में लिखता है कि….

“मैंने ऐसे घीसू और माधव नहीं देखे
जब घर में शव पड़ा हो और वो समोसे खाएं
मैंने ऐसे अमानवीय, बेशर्म बाप-बेटे नहीं देखे
जो अपनी पुत्रवधू और पत्नी के
कफ़न के पैसों से शराब पी जाए…..”

इस रचना के माध्यम से कवि अपनी कलम को समाज के प्रति मानवीय सरोकार के साथ चलाता है कि मेरे समाज में चाहे कितनी बुराइयों क्यों न हों लेकिन इतने निर्दयी और अमानवीय पात्र नहीं हैं और न ही मैंने अपने जीवन में ऐसे पात्र देखे हैं ।

लेखक अपनी दो रचनाओं ‘मैं भारत हूॅं’ और ‘मेरा भारत ठिठुर रहा’ के माध्यम से देश की आर्थिक, सामाजिक, शैक्षिक व्यवस्था पर सवाल खड़े करता है कि जब देश के हुक्मरान अपने चुनावी दौरों में वायदों को झड़ी लगा देते हैं तो फिर ऐसे हालात क्यों पैदा हो रहे हैं कि लोगों को शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार के लिए लड़ना पड़ता हैं ? कवि की कलम इन कविताओं में चिंतनीय भाव लिए देश के वर्तमान हालात को बयां करती है ।

काव्य संग्रह की शीर्षक कविता ” रेत पर कश्तियाॅं” में कवि देश की वर्तमान स्थिति पर प्रश्नचिह्न लगाते हुए सरकार से सवाल पूछने की शैली में कलम चलाता है । कवि प्रश्न करते हुए पूछ रहा है कि….

“रेत पर यूॅं कश्तियाॅं चलाओगे कब तक
ये झूठी तसल्लियाॉं दिलाओगे कब तक

किसी ना किसी रोज रूबरू होना ही है
सच्चाई से यूॅं ही अखियाँ बचाओगे कब तक ।”

कवि अंतिम पक्तियों में सत्ता से सवाल पूछता है और उन्हें सतर्क रहने के लिए कहता हुआ लिखता है कि…

“सत्ता के नशे में चूर हो करके ए हुक्मरानों
मजलूमों की बस्तियाॅं जलाओगे कब तक ”

कुछ लोगों को बहुजन महापुरुषों के नाम से ही जलन सी होने लगती है । किसी महापुरुष का नाम अगर उनके सामने गर्व से लिया जाय तो उन्हें ऐसा लगता है जैसे उनके सीने पर साँप लिटा दिया हो । ऐसे ही हालातों पर कवि द्वारा लिखी गई एक रचना “भीम होने का अर्थ…..” नाम से है जिसमें कवि बाबा साहेब के बारे में लिखता है कि भीमराव ऐसे ही नहीं बन जाते, बहुत कष्ट सहे जाते हैं, अपमान झेला जाता है, सदियां गुज़र जाती हैं तब कहीं जाकर भीमराव जैसे महामानव हमारे जीवन में आते हैं और हमारे हक अधिकार की बात लिखी जाती हैं । मनुवादियों को हमारे जय भीम बोलने से , बाबा साहेब के नाम से कितनी ईर्ष्या है इसका अंदाजा उनके चेहरों के भाव से दिख जाता है इसलिए कवि लिखता है कि….

“तुम्हें ईर्ष्या होती है
हमारे भीम बाबा से
तुम्हें ईर्ष्या होती है न
हमारे जय भीम से ।”

अंतिम पंक्तियों में कवि अपनी बात कहता है कि…

“तुम्हें बता दूॅं…
कोई ऐसे ही
भीमराव नहीं बन जाता है
इन सब मुसीबतों से लड़कर
बालमन पर जाति
की खरोंचे सहकर
जो अंगारों की राह अपनाता है
वही, बाबा साहेब कहलाता है ।”

कवि की इसी कविता को कोट करते हुए हिंदी की वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. सुशीला टाकभौरे जी लिखती हैं कि-“दलित पिछड़े होने के बाद भी वे अज्ञानता के कारण डॉ. भीमराव अंबेडकर के अनुयायी नहीं बनना चाहते हैं । दलितों को शिक्षा ,समता और सम्मान का अधिकार डॉ.अंबेडकर न ही दिलाया है फिर भी कुछ दलित जातियों के लोग सवर्णों के बहकावे में आकर डॉ. अंबेडकर का विरोध करते हैं । वह अपना इतिहास भुलाकर सच्चाई से मुॅंह मोड़ते हैं ऐसे लोगों को जानना चाहिए कि कितनी कठिनाइयों के बाद हमें यह समता और सम्मान का अधिकार मिल सका है, क्योंकि जातिवाद के वे सभी अपमान बाबा साहेब ने बचपन में स्वयं भोगे थे । अपमान को आग में तपकर ही वह बाबा साहेब डॉ. भीमराव अंबेडकर बन पाए थे । ”

डॉ. अंबेडकर ने हमारे सदियों से गिरवी पड़े स्वाभिमान को मुक्त करवाया है । इसलिए अब हमें आगे की लड़ाई लड़नी है, अपने स्वाभिमान की रक्षा और अपने आने वाली पीढ़ियों के अधिकारों की रक्षा भी करनी है ।

कवि ने अपनी कविता ” बुद्ध और बाबा साहेब का मार्ग” के माध्यम से चंद सवर्णों द्वारा किए जा रहे सामाजिक विघटन को मर्यादित शब्दों के साथ बखूबी चित्रण करने की सफल कोशिश की है । जिसमें लेखक सवर्णों द्वारा तोड़ी जा रही बाबा साहेब की मूर्तियों और उनके द्वारा किए जा रहे सामाजिक विघटन को समाज के विकास में बाधक मानते हुए लिखता है …

“कौन है यह असामाजिक तत्व ?
सवर्ण, अरे तुम!
इतनी असामाजिकता कहाॅं से लाते हो…?

असल में सदियों से इस समाज के
असली समाजकंटक तुम ही हो
जो सामाजिक अलगाव पैदा करते हो ।

बाबा साहेब
किसी मूर्ति में नहीं बसते हैं
जो किसी के मिटाने से मिट जायेंगे
बाबा साहेब एक विचारधारा है
जो हमारे मन मस्तिष्क
और रग -रग में बस गए हैं ।”

कवि ने अपनी कविता “अलग – अलग धड़े” में समाज में फैली गुटबंदी पर अपनी कलम चलाते हुए उन लोगों पर कटाक्ष किया है जो कि बाबा साहेब के द्वारा दिलाए गए संवैधानिक अधिकारों की बदौलत आज ऊॅंचे-ऊॅंचे पदों पर आसीन हैं लेकिन फिर भी वे लोग अपने समाज के लोगों से ही अलग होते जा रहे हैं । इसमें उनका भ्रम, लालच, प्रतिष्ठा, पद इत्यादि आड़े आ जाता है । कवि इस कविता की अंतिम पक्तियों में लिख रहा है…

“इधर
आपके जाने के
बाद से आज तक
ये सभी बुद्ध की ओर जा रहे हैं
बुद्धम शरणं गच्छामि के गीत गा रहे हैं
बस !
खुद को ही
श्रेष्ठ बता रहे हैं,
जय भीम के साथ
नमो बुद्धाय के नारे भी लगा रहे हैं,
फिर भी अपने भाइयों से अलग -थलग होते जा रहे हैं ।”

कवि ने अपनी कलम के माध्यम से माता – पिता का चित्रण भी मार्मिकता के साथ प्रस्तुत किया है जिसमें उनकी रचना “माॅं कभी नहीं हारती है….” में माॅं के साहस, त्याग, बलिदान और समर्पण को दिखाया है तो पिता को समर्पित उनकी रचना “पिता शब्द की परिभाषा” में पिता के प्यार, स्वभाव और संतान के लिए उसकी ख्वाहिशों को परिभाषित किया है ।

कवि ने स्त्री शिक्षा को बढ़ावा देने के उद्देश्य से एक बेटी का अपने पिता से पढ़ने के लिए गुजारिश करते हुए भी अपने शब्दों में व्यक्त किया है । एक बेटी का पढ़ने की लालसा को पिता के समक्ष प्रस्तुत करते हुए दिखाया गया है कि अगर आप मुझे मौका देंगे तो मैं भी वही मुकाम हासिल कर सकती हूॅं जो कि एक लड़का हासिल करेगा । जब घर में पढ़ने का अधिकार एक लड़के को है तो मुझे वो अधिकार क्यों नहीं मिल रहा है ? समाज के नाम पर सारी बंदिशें मेरे ऊपर ही क्यों थोपी जा रही हैं ?

इस काव्य संग्रह में लेखक ने विविध आयामों की कविताओं को स्थान दिया है जिनमें मिज़ाज, जगाने की बात कर, मन की बात, भीतर का कायर, जोगी वाला फेरा, वक्त आने पर, मुझे घर जाने दो, चोट, सृजन की फसल, झूठ के पाॅंव, मजदूर हैं हम, वोट के बदले, चौराहे पर अफ़ीम, झूठी तस्वीर और आदमी कविता शामिल हैं । इस काव्य संग्रह में कवि ने कई ग़ज़लनुमा नज़्मों को भी शामिल किया है । इसीलिए लेखक के इस गुण के बारे में डॉ. सुशीला टाकभौरे लिखती हैं कि युवा कवि का यह विशेष गुण है जो उनके काव्य लेखन के शिल्प और सौंदर्य को बताता है ।

इस काव्य संग्रह की अधिकतर रचनाओं के माध्यम से लेखक ने सवर्ण जातियों के जुल्म के खिलाफ़ अंबेडकरवादी सोच को दिखाया है । जिसकी कई रचनाऍं बाबा साहेब अंबेडकर के त्याग , बलिदान, और समर्पण को दर्शाती हैं जिनमें दलित साहित्य की अंबेडकरवादी विचारधारा को स्पष्ट दिखाया गया है । लेखक के विचार और उसकी कलम जुल्म और अत्याचारियों के खिलाफ निर्भीक , निष्पक्ष और स्वतंत्र होकर स्पष्ट तरीके से चली है ।

आशा ही नहीं बल्कि विश्वास है कि अपनी रचनाऍं हिंदी साहित्य में अपना स्थान पायेगी और आपको मुकाम तक ले जायेगी तथा पाठकों को पढ़ने के लिए विवश करेंगी । भविष्य में आपकी लेखनी द्वारा ऐसे ही ज्वलंत मुद्दों पर आधारित अन्य पुस्तकों का सृजन होगा। ऐसी उम्मीदों के साथ आपके साहित्यिक जीवन के उज्ज्वल भविष्य की कामना करते हुए हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं…

आर एस आघात
अलीगढ़, उत्तर प्रदेश
8475001921

4 Likes · 517 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.

You may also like these posts

तेवरी’ का शिल्प ग़ज़ल का है ‘ + देवकीनन्दन ‘शांत’
तेवरी’ का शिल्प ग़ज़ल का है ‘ + देवकीनन्दन ‘शांत’
कवि रमेशराज
दलित साहित्य / ओमप्रकाश वाल्मीकि और प्रह्लाद चंद्र दास की कहानी के दलित नायकों का तुलनात्मक अध्ययन // आनंद प्रवीण//Anandpravin
दलित साहित्य / ओमप्रकाश वाल्मीकि और प्रह्लाद चंद्र दास की कहानी के दलित नायकों का तुलनात्मक अध्ययन // आनंद प्रवीण//Anandpravin
आनंद प्रवीण
3898.💐 *पूर्णिका* 💐
3898.💐 *पूर्णिका* 💐
Dr.Khedu Bharti
धन, दौलत, यशगान में, समझा जिसे अमीर।
धन, दौलत, यशगान में, समझा जिसे अमीर।
Suryakant Dwivedi
"परिवर्तनशीलता"
Dr. Kishan tandon kranti
कितने चेहरे मुझे उदास दिखे
कितने चेहरे मुझे उदास दिखे
Shweta Soni
■ अनियंत्रित बोल और बातों में झोल।।
■ अनियंत्रित बोल और बातों में झोल।।
*प्रणय*
Yes,u r my love.
Yes,u r my love.
Priya princess panwar
एक राजा की राज दुलारी
एक राजा की राज दुलारी
डॉ विजय कुमार कन्नौजे
संघर्षशीलता की दरकार है।
संघर्षशीलता की दरकार है।
Manisha Manjari
खुद निर्जल उपवास रख, करते जो जलदान।
खुद निर्जल उपवास रख, करते जो जलदान।
डॉ.सीमा अग्रवाल
*अच्छा नहीं लगता*
*अच्छा नहीं लगता*
सुरेन्द्र शर्मा 'शिव'
#पावन बेला प्रातः काल की #
#पावन बेला प्रातः काल की #
rubichetanshukla 781
जमाने को मौका चाहिये ✨️ दोगे तो कतरे जाओगे
जमाने को मौका चाहिये ✨️ दोगे तो कतरे जाओगे
©️ दामिनी नारायण सिंह
ज़िन्दगी थोड़ी भी है और ज्यादा भी ,,
ज़िन्दगी थोड़ी भी है और ज्यादा भी ,,
Neelofar Khan
सावन की बौछारों में ...
सावन की बौछारों में ...
sushil sarna
रात का आलम किसने देखा
रात का आलम किसने देखा
कवि दीपक बवेजा
सोना बन..., रे आलू..!
सोना बन..., रे आलू..!
पंकज परिंदा
कर्महीनता
कर्महीनता
Dr.Pratibha Prakash
*कहॉं गए वे लोग जगत में, पर-उपकारी होते थे (गीत)*
*कहॉं गए वे लोग जगत में, पर-उपकारी होते थे (गीत)*
Ravi Prakash
उसकी वो बातें बेहद याद आती है
उसकी वो बातें बेहद याद आती है
Rekha khichi
आंखों में नमी
आंखों में नमी
Surinder blackpen
मैं भटकता ही रहा दश्त ए शनासाई में
मैं भटकता ही रहा दश्त ए शनासाई में
Anis Shah
कल मैं सफरर था, अभी तो मैं सफर में हूं।
कल मैं सफरर था, अभी तो मैं सफर में हूं।
Sanjay ' शून्य'
दिल का हाल
दिल का हाल
पूर्वार्थ
खता खतों की नहीं थीं , लम्हों की थी ,
खता खतों की नहीं थीं , लम्हों की थी ,
Manju sagar
****शिक्षक****
****शिक्षक****
Kavita Chouhan
इनका एहसास खूब होता है,
इनका एहसास खूब होता है,
Dr fauzia Naseem shad
প্রতিদিন আমরা নতুন কিছু না কিছু শিখি
প্রতিদিন আমরা নতুন কিছু না কিছু শিখি
Arghyadeep Chakraborty
*किसान*
*किसान*
Dushyant Kumar
Loading...