अंबर
अक्सर
अपनी ऊंचाइयों पर
इतराता रहता था
पल पल
धरा को
कुछ कम
ठहराता रहता था
अक्सर कहा करता
“तुम
मेरी बराबरी नहीं कर सकती हो
मैं असीम ऊंचाइयों पर हूं
तुम मुझे बस निहार सकते हो”
धरा ने कहा,
“मुझ से जो जल भाप बन उठता है
मेघ बन
तेरे सौंदर्य में
वह एक माणिक्य और जड़ता है
उसने
तेरी सुंदरता में नगीना जड़ा है
और न भूल
जब भी बिछोह में तुमने
आंसू बहाया है
मेरे मित्र
वह मेरे ही आंचल में समाया है
मेरे ही आंचल में समाया है ।।