अंधविश्वास का पोषण
संचय और संग्रह कर करके.
तथाकथित ईश्वर भगवान को थोपा गया,
तुलसीदास की रामायण और वेदव्यास के महाभारत, महाकाव्य,
वैदिक काल ने इसे संजोए रखा ।
नाम पड़ा सनातन शाश्वत हिंदुत्व तक सिकुड़ गया,
जितने भी तथाकथित धर्म उत्पन्न हुए,
खासकर हमारे भारतीय परिवेश में ।
एक अवतरण परंपरा का आगाज हुआ ।
जहां पर तथाकथित सनातन परंपरा का वश चला
उसका विरोध किया,
अन्यथा उसको सनातन परंपरा में जगह दे दी.
जैसे :- जैन /बौद्ध /सिक्ख
जबकि तीनों जीव चेष्टाओं और गैर ईश्वरवादी जीवनशैली है ।
आज भी भारत छलिया चाल से अनभिज्ञ है ।
क्योंकि :- यह वर्ण-व्यवस्था और जातिये बिखराव
को ही अपना “धर्म वा आचरण मानते है ।
इसका मूल कारण है :-
यह व्यवस्था काबिलियत को सीधे नकार देती है.
सारे के सारे ग्रंथ महाग्रंथ पुराण
सब के सब स्त्री/महिला और शूद्र वर्ग को सभी हिस्सेदारी से बाहर रखते है ।
स्त्री को भोग्या
तथा
शूद्र को सेवक
कह कर खुद मालिकाना हक,
जो पाखंड /आडंबर तय करते हो,
जिन्होंने मुस्लिम समाज तक को स्वीकार कर लिया,
आक्रांताओं के साथ रह कर,
सुख भोग किया,
अंग्रेजी हुकूमत के साथ,
कंधे से कंधा मिलाकर,
वंचितों को दबाते हुए,
आगे बढ़ते चले गये हो,
.
वे राजपाट की पटकथा पर आंच आने देंगे ।
संविधान के खिलाफ,
जो लोग है,
वे तेजी से आगे बढ़ रहे है,
सबसे पहले भुखमरी, बेरोजगारी, अव्यवस्था किसको लील लेगी,
जिसके पास संसाधन नहीं है ।