अंधभक्तों की तथाकथा (भाग-2)
8 नवंबर को 2016 को मिस्टर बाहुबली ने नोटबंदी की. करीब 50 दिन लोगों ने बैंकों की लाइन में लगकर बिताए. सैकड़ों लोग लाइन में लगकर मर गए. देश की आर्थिक गतिविधियां ठप हो गर्इं. इससे देश को क्या लाभ हुआ या नहीं, यह तो अब देश के हर जानकारों को पता है. लेकिन उस वक्त किस कदर प्रोपोगेंडा फैलाया गया था, इस बात का अहसास मुझे सिवनी (मध्यप्रदेश) में हुआ. बात जनवरी 2017 के प्रथम सप्ताह की है. मैं नागपुर से सपत्नीक अपने गृह जिला मंडला (मध्यप्रदेश) जा रहा था. सिवनी के बसस्टैंड पर अपनी बस के इंतजार में हम बैठे थे. बस के लिए अभी समय था. इस बीच में एक चाय ठेले पर चाय पीने लग गया. वहां पर मैंने एक बंदे से पूछा-‘क्यों भाई, अभी नोटबंदी हुई थी, उस पर आप लोगों की क्या राय है?’ भीड़ में से एक सज्जन ने तपाक से कहा- ‘अरे भैया क्या बताएं, बड़े लोग तो रो रहे थे भैया, बे तो नोट की आगी तापे हैं भाई क्या बताएं.’ उसने और भी बातें की. हर वाक्य में वह ‘क्या बताएं’ जरूर बोला करता. ये सज्जन सिवना शहर के करीबी गांव के थे. सोचिए प्रोपोगेंडा के बल पर किस कदर झूठ को लोगों के सिर पर चढ़ाया गया था.