*अंधकार वनाम घृणा*
सच तिमिर ! तुम्हें निज घृणा दंश मारेगी ।
उर उदभासित तुम्हारी वाणी ने
प्रतिक्षण मुझको लघु जिव कहा।
किस मुख मैं समतुल्य कहूँ फिर
सोचने के लिए नित यह नया रहा ।।
हो विवेकशील तो बोध करो,यह कालिमा धिक्कारेगी।
सच तिमिर————————————————–।।
स्वरचित वर्ग तंत्र ने हैं
बाँट दिए सबके ह्रदय ।
निर्भय थूका घृणित उर द्रव
बना कुटिल पग पग निर्दय ।।
जानों वह सिंती विद्वेष धार, पथ पर अंगार वरसावेगी।
सच तिमिर————————————————–।।
छुद्र कह जिसको पुकारा
वह छुद्र नहीं , हम छुद्र प्यारे।
हैं व्यबहारहीन औ अभद्र हम
सच रतिरहिन पल पल प्यारे ।
विहंसो न ईर्ष्या लिप्त हो,रति धार मधुकण विखराबेगी।
सच तिमिर————————————————–।।
सह रहा हूँ दर्द जग का
जन्म से अब् तक सदा।
सुनाऊं किसे व्यथा कहानी
जब रवि ही न सुन सका ।।
रोयेंगे हम सभी कभी,या मेरी आँखें पानी छलकावेंगी ।
सच तिमिर—–/——————————————–।।