अंदेशा (लघुकथा)
इतवार का दिन होते हुए भी स्कूल में गहमा गहमी थी। वार्षिक उत्सव की तैयारी ज़ोरों पर थी। १० वर्ष के मनुज ने डांस प्रैक्टिस कर, गिटार पर हाथ साफ़ करने के इरादे से जैसे ही गिटार उठाया, स्कूल प्राणांग में अचानक उठे शोर ने क्लास के सभी छात्रों -छात्राओं का ध्यान खींच लिया। सभी गलियारे में आ गए। डांस सर एक लड़की को गोद में उठाये चिल्लाते हुए स्कूल एम्बुलेंस की ओर भागे जा रहे थे। प्रिंसिपल मैम , कोहली मैम , हेड गर्ल और कोर्डिनेटर सर उनके पीछे पीछे। एम्बुलेंस के पास भीड़ लग गयी। मनुज ने देखा लहूलुहान और खून से सनी स्कर्ट पहने आठवीं क्लास की छात्रा टीनी दीदी को एम्बुलेंस में डाला जा रहा था। वह सहम गया। प्रिंसिपल मैम ने छुट्टी का ऐलान कर दिया। सभी बच्चों को बस में बिठा दिया गया।
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” माँ , आप बिलकुल मेरी चिंता मत करो।….. अभी तो चौथा ही महीना है।….. भुवनेश मेरा खूब ख्याल रखते हैं। मनु के बाद यह दूसरा बच्चा होगा माँ। सभी बहुत खुश हैं।……. भुवनेश और मैं तो बेटी ही चाहते हैं। मनु तो बहन बहन की रट अभी से लगा रहा है।……. नहीं , स्कूल गया है। शाम तक आजायेगा। वार्षिक उत्सव में भाग ले रहा है वह।….. अच्छा रखती हूँ। इनको दोपहर की चाय चाहिए होती है। .. … अच्छा नमस्कार माँ। ” दीक्षा ने मोबाइल बंद कर फ्रिज के पास रख दिया और स्टोव पर चाय के लिए पानी चढ़ा दिया।
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बस चल पढ़ी। टीनी दीदी उसी बस से आती जाती थी। स्कूल की हेड गर्ल भी उसी बस में थी। सीनियर क्लास की छात्राएं बस में ही उसको घेर कर उससे घटना के बारे में पूछने लगी। कुछ ही देर में सभी लड़कियां अपनी अपनी जगह सहम कर बैठ गयी। लड़के सर झुका नज़रे नहीं मिला रहे थे। मनुज कुछ समझा, कुछ नहीं पर यह वह समझ गया की टीनी दीदी के साथ जो हुआ बहुत बुरा हुआ था।
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दीक्षा ने भुवनेश को चाय पकड़ाई तो भुवनेश ने उसको अपने पास बिठा कर बड़े प्यार से मुस्कुराते हुए उसके उभरे उदर को सहलाया तो दीक्षा को एक आनंद की सी अनुभूति हुई। “यह क्या कर रहे हो। दरवाज़ा बंद नहीं है।”, दीक्षा ने भुवनेश से मुक्त होने का बहाना सा किया।
“कोई नहीं आएगा। माँ सत्संग में गयी है, मनु शाम से पहले आने वाला नहीं है ” भुवनेश ने उसे अपने बाहुपाश में बाँध लिया।
” अच्छा। नाम सोचा है ” दीक्षा ने फुसफुसाते हुए पुछा।
“हाँ। शुभ्रा। कैसा है ?” भुवनेश ने उसके चेहरे को हथेलियों में समा लिया।
“बहुत अच्छा है। तुम कितने अच्छे हो ” दीक्षा का चेहरा लाल हो गया था।
“पर अगर लड़का हुआ तो। शुभ्रांशु या अनुज। मनुज का भाई अनुज।” भुवनेश दीक्षा को चिढ़ाते हुए बोला।
” नहीं। सोचो मत। मुझको बेटी ही चाहिए इस बार और मनु को बहन ”
“नहीं चाहिए मुझे बहन। बहन नहीं चाहिए। नहीं चाहिए। नहीं चाहिए ” मनुज अंदर दाखिल हो चुका था। बैग उसने सोफे की और उछाल दिया। भुवनेश और दीक्षा दोनों सकते में आ गए।
“क्या हुआ मनु ? तुम तो स्कूल में थे ? ऐसा क्यों कह रहे हो बच्चा ? कल ही तो हमने – तुमने बहन के लिए बार्बी खरीदी।
“नहीं चाहिए मुझे बहन। कहा ना। बस ‘” मनुज चिल्लाते हुए बोला और माँ से लिपट गया। भुवनेश से रहा नहीं गया। उसने मनुज जो अपनी और किया और पुछा , ” मगर क्यों , मनु ? क्यों ?”
” क्यूंकि , उसका रेप हो जाएगा पापा !!! ”
दीक्षा और भुवनेश को काटो तो खून नहीं।
सन्नाटे में दीवारें तक कांप रही थी।
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