अंदर मेरे रावण भी है, अंदर मेरे राम भी
अंदर मेरे रावण भी है, अंदर मेरे राम भी
अंदर मेरे रावण भी है, अंदर मेरे राम भी,
ना मुझ्सा कोई साधु है, ना मुझसा कोई हैवान भी।।
हृदय में मेरे द्वंद्व है, सदा ही चलता युद्ध,
कभी रावण जीतता है, कभी राम होता मुखर।।
क्रोध और लोभ के रावण, ज़हर घोलते हैं मन में,
वहीं प्रेम और करुणा के राम, देते हैं आश्रय जीवन में।।
कभी मैं स्वार्थी बनता, रावण बन जाता हूँ,
कभी परोपकारी बनता, राम बन जाता हूँ।।
यह खींचतान है सदा, मेरे जीवन की डोरी,
कभी रावण हावी होता, कभी राम होता स्वतंत्र।।
लेकिन मैं हार नहीं मानता, यह संघर्ष जारी है,
एक दिन रावण को मारकर, राम ही विजयी होगा।।
अंत में जीत होगी सत्य की, होगी असत्य की हार,
और तब मेरे अंदर का राम, होगा पूर्ण अवतार।।