Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
1 Oct 2021 · 2 min read

अंतिम सिंदूर दान

घर की मालकिन का कल रात देहान्त हो गया। मात्र कुछ दिन इलाज चला जिसमे तीन चौथाई दिनो अस्पताल में रही, वहीं से कफन मे लिपट के एम्बुलेंस में घर लौटीं। संशय बना हुआ है, मौत मर्ज से हुई या इलाज से। ये महंगे नर्सिंग होम वाले बस इलाज करते रहते उन्हे मरीज की जिंदगी और मौत से कोई मतलब नहीं होता। ये व्यवस्था बदलनी चाहिए।

दोपहर के पहले शव यात्रा का समय निश्चित हुआ। शहर और बाहर के लगभग सभी लोग आ चुके है, जो लोग नही आ पाये वो घाट पहुचेगे। बाहर तिख्ती रेडी हो चुकी है अंदर मालकिन को तैयार करने वाली महिलाएं गमगीन नम आखों से रोते हुए, नई साडी ब्लाउज पहना के नख शिख सोलह श्रृंगार कर रही है। मालकिन की बडी भाभी आंसू पोछती हुई बोली – ‘देखो कुछ भी छूटने न पाए अच्छी तरह सजाओ, हम तो अभागे थे हमारी नन्द भाग्यशाली है सुहागन जा रही है, ऐसी किस्मत सबकी कहां होती है ?’

नई नवेली दुल्हन की तरह सजा के बाहर रक्खी तिख्ती मे मालकिन को लिटाया गया, शरीर को कफन से ढक कर, अंतिम दर्शन के लिए चेहरा खुला छोड़ दिया गया। सबकी खोज खबर रखने वाली सबका हित चाहने वाली ममतामयी मालकिन को बिदाई से पहले भेंट देने का सिलसिला शुरू हुआ। तमाम साड़ियाँ शाल दुशाले रामनामी उनके मृत शरीर पर डाल दिये गये। फूलों के साथ हार भी खूब पहनाए गए । जैसे-जैसे बिदाई का समय नजदीक आता जाता, सिसकियाँ रुदन क्रदंन मे बदलती जाती, बेटियां बेटा बहू नाते रिश्तेदार और पडोसियों का भी रो रो कर हाल बेहाल होता जा रहा था।

मेरे आंसू सूख चुके थे, किंकर्तव्यविमूढ़ हाल ही मे उनके साथ बिताए गए समय की यादों में खोया हुआ था। मालकिन की सबसे छोटी नन्द मेरी मुंह बोली छोटी बहन की आवाज से तंद्रा टूटी – ‘भाई साहब तैयारी हो चुकी है भाभी की मांग भर दीजिए।’ यंत्रचालित सा उनके सिरहाने पहुंच के चुटकी से सिंदूर जैसे वो लगाती थी लगा दिया। आवाज आई – ‘ ये क्या ? चुटकी नही मुट्ठी भर लीजिये माथे से सर के पीछे तक ठीक से लगाईए, ताकि दूर से दिखाई दे कि सुहागन जा रही है।’

चलो भई उठाओ
राम नाम,
सत्य है।

स्वरचित मौलिक सर्वाधिकार सुरक्षित
?
अश्वनी कुमार जायसवाल कानपुर 9044134297

Language: Hindi
4 Likes · 8 Comments · 647 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
Books from Ashwani Kumar Jaiswal
View all
You may also like:
रमेशराज के 12 प्रेमगीत
रमेशराज के 12 प्रेमगीत
कवि रमेशराज
#लघुकथा
#लघुकथा
*प्रणय*
खुद से ज़ब भी मिलता हूँ खुली किताब-सा हो जाता हूँ मैं...!!
खुद से ज़ब भी मिलता हूँ खुली किताब-सा हो जाता हूँ मैं...!!
Ravi Betulwala
वो तो एक पहेली हैं
वो तो एक पहेली हैं
Dr. Mahesh Kumawat
*पुरस्कार तो हम भी पाते (हिंदी गजल)*
*पुरस्कार तो हम भी पाते (हिंदी गजल)*
Ravi Prakash
* पत्ते झड़ते जा रहे *
* पत्ते झड़ते जा रहे *
surenderpal vaidya
छुपा छुपा सा रहता है
छुपा छुपा सा रहता है
हिमांशु Kulshrestha
कर्मफल का सिद्धांत
कर्मफल का सिद्धांत
मनोज कर्ण
*.....उन्मुक्त जीवन......
*.....उन्मुक्त जीवन......
Naushaba Suriya
आदमी का वजन
आदमी का वजन
पूर्वार्थ
रक्त एक जैसा
रक्त एक जैसा
Dinesh Kumar Gangwar
प्रीत ऐसी जुड़ी की
प्रीत ऐसी जुड़ी की
Seema gupta,Alwar
3811.💐 *पूर्णिका* 💐
3811.💐 *पूर्णिका* 💐
Dr.Khedu Bharti
दो अक्टूबर - दो देश के लाल
दो अक्टूबर - दो देश के लाल
Rj Anand Prajapati
कैसी हसरतें हैं तुम्हारी जरा देखो तो सही
कैसी हसरतें हैं तुम्हारी जरा देखो तो सही
VINOD CHAUHAN
"प्यासा"के गजल
Vijay kumar Pandey
Feelings of love
Feelings of love
Bidyadhar Mantry
शिव सुखकर शिव शोकहर, शिव सुंदर शिव सत्य।
शिव सुखकर शिव शोकहर, शिव सुंदर शिव सत्य।
डॉ.सीमा अग्रवाल
"आजादी के दीवाने"
Dr. Kishan tandon kranti
सदा मन की ही की तुमने मेरी मर्ज़ी पढ़ी होती,
सदा मन की ही की तुमने मेरी मर्ज़ी पढ़ी होती,
अनिल "आदर्श"
"परिश्रम: सोपानतुल्यं भवति
Mukul Koushik
किताब-ए-जीस्त के पन्ने
किताब-ए-जीस्त के पन्ने
Neelam Sharma
श्री कृष्ण जन्माष्टमी
श्री कृष्ण जन्माष्टमी
Dr.Pratibha Prakash
होली के दिन
होली के दिन
Ghanshyam Poddar
ना अब मनमानी करता हूं
ना अब मनमानी करता हूं
Keshav kishor Kumar
कोई तो मेरा अपना होता
कोई तो मेरा अपना होता
Juhi Grover
विदेशी आक्रांता बनाम मूल निवासी विमर्श होना चाहिए था एक वामप
विदेशी आक्रांता बनाम मूल निवासी विमर्श होना चाहिए था एक वामप
गुमनाम 'बाबा'
यादें मोहब्बत की
यादें मोहब्बत की
Mukesh Kumar Sonkar
वसंत बहार
वसंत बहार
नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर
मुक्तक
मुक्तक
Neelofar Khan
Loading...