“अंतस की आवाज”
वक्त बे वक्त तुम याद आओ नहीं ,
मन के अंतस को यूं तुम सताओ नहीं ।
कर दिया जब समर्पण मेरे मौन ने ,
बुझ गई जो समा फिर जलाओ नहीं ।।
वक्त बे वक्त तुम…………………
हर कदम तेरे आने की आहट मिले ,
मन के अंतस में ऐसी सजावट मिले ।
टूटकर भी हृदय चन्द टुकड़े बना ,
फिर भी टुकड़ों में तेरी ही सूरत दिखे ।।
मन व्यथित हो गया तन शिथिल हो गया ,
वक्त की धार में सब समय घुल गया ।
मन की वीणा मेरी शब्द से गिर गई ,
स्वप्न जीवन की वो प्यास भी बुझ गई ।।
दूर होकर भी तुम पास आओ नहीं ,
वक्त बे वक्त तुम याद आओ नहीं,
मेरे अंतस को तुम यूं सताओ नहीं ,
वक्त बे वक्त……………………….।।
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