अंतर
नन्हा बालक होता है अबोध,
ना समझे वो कोई शोध।
वो तो है एक अभिन्न कृति,
ना जाने वो मानव प्रकृति।।
जब होती उसको भूख,
नापसंद चीज को वो देता थूक।
उससे ना करे कोई वाद ,
क्यूंकि उसे पसंद नहीं वो स्वाद।।
कभी कभी वो करता
थोड़ा बहुत गुस्सा और क्रोध।
क्यूंकि उसे,
बिलकुल नहीं उसका प्रबोध।
वो पूछे कई बार,
एक ही बात।
क्यूंकि जिज्ञासा ही है,
उसका जज़्बात।
घर वालो से,
करता वो शिकायत और जिद।
और बाहर वालो के सामने,
बंद हो जाती उसकी जीभ।
कोई कहे उसे,
कुछ भेद की बातें तो वो पचा जाता।
पर मज़ाल है वो,
किसी को बता के आता।
देख देख कर सीखता,
वो सब संस्कार।
फिर क्यों दूजे कहते,
कि उसके अच्छे ना आचार विचार।
कुछ कुछ लोग है कहते,
की बुढ़ापा भी बचपना है लाता।
पर कुछ दुविधा है,
इसमें कोई समानता ना पाता।
अब जब होती भूख,
अपनी पसंद ही चाहिए नहीं तो देते थूक।
चाहे कितना भी करो वाद,
दुसरे की पसंद का ना चलेगा स्वाद।।
हर कहीं होता है अब गुस्सा
बहुत सी घृणा और और थोड़ा सा क्रोध।
क्यूंकि उसे दूजे को नीचे दिखाने का,
अच्छे से है प्रबोध।
वो कहे अलग अलग लोगो को कई बार,
एक ही बात।
क्यूंकि चुगली ही है,
उसका जज़्बात।
बाहर वालो से,
करता वो अपने घर की शिकायत और जिद।
और घर वालो के सामने,
चुप ही रह जाती उसकी जीभ।
कोई कहे उसे,
कुछ भेद की बातें तो वो अब ना पचा जाता।
पर मज़ाल है वो,
किसी को बिना बता के आता।
हर दिन सीखाते ,
वो सब यही संस्कार।
फिर कहते,
आजकल के बच्चो के अच्छे नही है आचार विचार।
डॉ महेश कुमावत 16 मार्च 2023