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30 Jan 2024 · 1 min read

अंतर

ये हसरत भरी निगाहें निहार रही हैं ऊँचाइयों पर ठहरे ऐशो-आराम को,
वहां पर पहुँचने और ठहरने के लिए सीढी बनाया है जिसने हमारे श्रम और काम को.

क्या हमारी सामर्थ्य कभी तलाश पायेगी उस आयाम को ?
उचित मूल्य मिले सके जहाँ हमारे श्रम और काम को.

शायद समझने और समझाने की सामर्थ्य में अंतर है,
तभी तो ये समझ का फासला निरंतर है.

हम उनके स्तर तक नहीं उठ पा रहे हैं समझाने को,
और वो हमारे स्तर पर नीचे नहीं आना चाहते समझ पाने को.

तभी तो यह समस्याओं का जाल तना हुआ है,
यह समझने और समझाने का अंतर बना हुआ है.

इस का हल तो हमें ही पाना होगा,
हमें ही समझाने को उनके स्तर तक आना होगा.

याद रखो कुआँ नहीं जाता प्यासे के पास,
प्यासा बिना जतन के मिटा नहीं पाता प्यास.

फिर क्यों बैठे हो हाथ पर हाथ धरे,
कुछ नहीं होगा बिना कुछ करे.

कुछ ऐसा हो प्रयास कि आलम तैयार हो जाये,
दोनों के बीच में ‘अर्थों’ का संचार हो जाये.

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