अंतर घट की प्यास
विषय- अंतर घट की प्यास
रिश्ते किश्तों में चुके, अंतस हुआ उदास।
सिक्त कोई न कर सका ,अंतर घट की प्यास।।
कस्तूरी मृग ढूँढ़ रहा, व्यापा मन संत्रास।
बुझी नहीं अज्ञान से, अंतर घट की प्यास।।
ध्वस्त हुए सपने सभी, मौन यहाँ संवाद।
अंतर घट की प्यास से, छाया मन अवसाद।।
हाथ मशालें थाम लो, रोको भ्रष्टाचार।
अंतर घट की प्यास से, पनप रहा व्यभिचार।।
धीरज निर्धन खो रहा, बचा नहीं विश्वास।
महँगाई से बढ़ गई, अंतर घट की प्यास।।
धुंध सघन पहरा लगा, ढूँढूँ मैं पहचान।
अंतर घट की प्यास से, दर्पण है अंजान।।
अंतर घट की प्यास से, तृप्त भला है कौन?
मानव दानव बन गए, आहें सिसकें मौन।।
चंदा ओझल हो गया ,करे निशा उपहास।
पिया बुझा दो दरश दे, अंतर घट की प्यास।।
आहत कर संवेदना, कंत गए वनवास।
हृदय विदारक हो गई, अंतर घट की प्यास।।
कभी न घटनी चाहिए ,अंतर घट की प्यास।
दमित हुईं जब भावना, राख हुए अहसास।।
डॉ. रजनी अग्रवाल “वाग्देवी रत्ना”
वाराणसी (उ. प्र.)