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8 Mar 2022 · 4 min read

अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस 2022

एक औरत सुबह कभी अकेली नहीं उठती…
उसके साथ उठती है..ढेर सारी जिम्मेदारियां…जरूरतें.. सपने..!!
अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस सुनने में तो बहुत अच्छा लगता है, परंतु जब इस मुद्दे पर एकांत में विचार किया जाए, तो मन में एक सवाल जन्म लेता है कि आखिर ऐसी क्या दिक्कत थी, जो अंतरराष्ट्रीय स्तर पर महिलाओं को सम्मान देने के लिए एक दिन की घोषणा करनी पड़ी?? क्या इसका उद्देश्य शुरुआत से ही केवल महिलाओं को सम्मान देना था, या उन्होने अपनी परेशानियों से तंग आकार आक्रोश में इस दिन को मनाना शुरू किया?? क्या भारत की ही तरह संपूर्ण विश्व में भी महिलाओं को अपने अधिकार अपने सम्मान को पाने के लिए चुनोतियों का सामना करना पड़ा ?? आज हम अपने इस आर्टिकल से आपके इन सवालों का जवाब देने और अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के संबंध में संपूर्ण जानकारी देने का प्रयत्न कर रहे है, उम्मीद करते है कि यह आपके लिए उपयोगी होगा.
नारी, यह कोई समान्य शब्द नहीं बल्कि एक ऐसा सम्मान हैं जिसे देवत्व प्राप्त हैं. नारियों का स्थान वैदिक काल से ही देव तुल्य हैं इसलिए नारियों की तुलना देवी देवताओं और भगवान से की जाती हैं. जब भी घर में बेटी का जन्म होता हैं, तब यही कहा जाता हैं कि घर में लक्ष्मी आई हैं. जब घर में नव विवाहित बहु आती हैं, तब भी उसकी तुलना लक्ष्मी के आगमन से की जाती हैं. क्या कभी आपने कभी सुना हैं बेटे के जन्म कर ऐसी तुलना की गई हो? कि घर में कुबेर आये हैं या विष्णु का जन्म हुआ हैं, नहीं. यह सम्मान केवल नारी को प्राप्त हैं जो कि वेदों पुराणों से चला आ रहा हैं जिसे आज के समाज ने नारी को वह सम्मान नहीं दिया जो जन्म जन्मान्तर से नारियों को प्राप्त हैं.

हमेशा ही नारियों को कमजोर कहा जाता हैं और उन्हें घर में खाना बनाकर पालन पोषण करने वाली कहा जाता हैं, उसे जन्म देने वाली एक अबला नारी के रूप में देखा जाता हैं और यह कहा जाता हैं कि नारी को शिक्षा की आवश्यक्ता ही नहीं, जबकि जिस भगवान को समाज पूजता हैं वहां नारी का स्थान भिन्न हैं. माँ सरस्वती जो विद्या की देवी हैं वो भी एक नारी हैं और यह समाज नारी को ही शिक्षा के योग्य नहीं समझता. माँ दुर्गा जिसने राक्षसों का वध करने के लिए जन्म लिया वह भी एक नारी हैं और यह समाज नारी को अबला समझता हैं. कहाँ से यह समाज नारी के लिए अबला, बेचारी जैसे शब्द लाता हैं एवम नारि को शिक्षा के योग्य नहीं मानता, जबकि किसी पुराण, किसी वेद में नारि की वह स्थिती नहीं जो इस समाज ने नारी के लिए तय की हैं. ऐसे में जरुरत हैं महिलाओं को अपनी शक्ति समझने की और एक होकर एक दुसरे के साथ खड़े होकर स्वयम को वह सम्मान दिलाने की, जो वास्तव में नारी के लिए बना हैं।
वूमेन डे प्रति वर्ष 8 मार्च को मनाया जाता हैं. लेकिन आज जो औरत की हालत हैं वो किसी से नहीं छिपी हैं और ये हाल केवल भारत का नहीं, पुरे दुनियाँ का हैं. जहाँ नारी को उसका ओदा नहीं मिला हैं. एक दिन उसके नाम कर देने से कर्तव्य पूरा नहीं होता. आज के समय में नारी को उसके अस्तित्व एवम अस्मिता के लिए प्रतिपल लड़ना पड़ता हैं. यह एक शर्मनाक बात हैं कि आज हमारे देश में बेटी बचाओ जैसी योजनाये हैं, आज घर में बेटी को जन्म देने के लिए सरकार द्वारा दबाव बनाया जा रहा हैं क्या बेटियाँ ऐसा जीवन सोचकर आती हैं जहाँ उसके माँ बाप केवल एक डर के कारण उसे जीवन देते हैं. समाज के नियमो ने समाज में कन्या के स्थान को कमजोर किया हैं जिन्हें अब बदलने की जरुरत हैं. आज तक जो हो रहा हैं उसे बदलने की जरुरत हैं जिसके लिए सबसे पहले कन्या को जीवन और उसके बाद शिक्षा का अधिकार मिलना जरुरी हैं तब ही इस देश में महिला की स्थिती में सुधार आएगा.आप सब के लिए एक छोटी सी कविता
……….
माथे पे हलकी सलवटों के बीच भी ,
उसकी बिंदी दमकती है ,
मन में हज़ारों ख्याल ,
पर होठों पे मुस्कान झलकती है ।
हाँ ,माथे पे हलकी सलवटों के बीच भी ,
उसकी बिंदी दमकती है ।

कभी सोचती की बच्चे का exam कैसा हुआ होगा ,
तो कभी सूट के मैचिंग दुप्पटे का ख्याल
कभी दिमाग में फेसबुक के लाइक्स ,
तो कभी काम वाली के न आने का सवाल ।
इन्ही छोटे बड़े ख्यालों में उसकी ज़िन्दगी कटती है ,
माथे की सलवटों में भी उसकी बिंदी दमकती है ।
ऑफिस की प्रेजेंटेशन वक़्त पर पूरी हो जाए ,
तो वक़्त पर घर पंहुचने का ख्याल
वक़्त पर घर पंहुच जाए
तो डिनर के मेनू का सवाल
मेट्रो में बैठे या कार स्कूटी चलते
हर पल मन उधेड्बुन में लगा रहता है ,
कितने ही काम मन ही मन निबटाते
लड़कियों का सफर कटता रहता है
चाहे करती हो जॉब कंही , या रहती हो घर पर
लड़कियों की ड्यूटी बिना रुके चलती है
माथे की सलवटों में भी उसकी बिंदी दमकती है ।।।
परफेक्ट माँ , पत्नी , बेटी और वर्कर बनते बनते ,
परिवार और रिश्तों की फ़िक्र करते करते
कई बार खुद ही खो जातें हैं ,
सबको खुश करते करते
सुना है मैंने , की आज WOMEN’S DAY है ,
हैरान हूँ , क्या? हमारा भी कोई ख़ास दिन है
सिर्फ एक दिन का मोहताज तो नहीं हो सकता अस्तित्व हमारा ,
सिर्फ एक दिन की आस तो नहीं हो सकता व्यक्तित्व हमारा ,
हर दिन गर हमारा न होता , हर दिन गर हम न होते ,
तो क्या ये दुनियां होती ? क्या ये रिश्ते होते ?
बच्चों की किलकारी तभी गूंजती है , रिश्तों में रोशनी तभी चमकती है ,
जब मेरे माथे की सलवटों में भी मेरी बिंदी दमकती ॥

मेरी इस कविता में “bindi” का अर्थ है – ” मेरा स्वाभिमान ”
दीपाली कालरा नई दिल्ली
Already Publish today edition 08.03.22

Language: Hindi
Tag: लेख
1 Like · 262 Views
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