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3 Jul 2021 · 3 min read

अंडा

मैं बचपन से ही बहुत शरारती थी। घर में टिक कर नहीं बैठती थी। मौका पाते ही आंख बचाकर अड़ोस पड़ोस में खेलने के लिए भाग जाती थी।
उस शाम भी मैं दो चार घर छोड़कर ही चौराहे के मोड़ के कोने पर बने चौहान आंटी के घर उनके बेटे आशु और अन्य बच्चों के साथ खेलने के लिए पहुंच गई।
वहां पहुंची तो देखा आंटी बरामदे में बैठी स्टोव पर एक बर्तन में कुछ उबाल रही थी। महक तो अच्छी थी। मेरा ध्यान अब खेल से हटकर इतना स्वादिष्ट क्या पक रहा है की तरफ चला गया। चौहान आंटी हमेशा से ही बड़े कड़क स्वभाव की रही हैं पर जैसे तैसे हिम्मत जुटाकर मैंने आखिरकार पूछ ही लिया कि वह क्या पका रही हैं। आंटी बोली, ‘अंडे उबाल रही हूं।’
इससे पहले मैंने अपने जीवन में कभी अंडे नहीं देखे थे। अंडे उबालने के बाद वह उन्हें छीलने लगी और परिवार के सभी सदस्यों और बच्चों आदि को आवाज लगाकर प्लेट में नमक के साथ परोसकर उन्हें एक एक करके देने लगी। सभी बड़ा स्वाद ले लेकर अंडे खा रहे थे। अंडे का स्वाद तो दूर मैंने तो इससे पहले उन्हें कभी देखा भी नहीं था। आंटी ने सबको अंडे दिये एक मुझे छोड़कर। मुझे उनका व्यवहार थोड़ा अजीब लगा लेकिन फिर मैंने एक आशा भरी निगाह से उनकी तरफ देखकर उनसे पूछ ही लिया, ‘आंटी, एक अंडा मुझे भी दे दो ना नमक के साथ।’ आंटी ने अचरज भरी नजरों से मुझे देखा और कहा कि, ‘बिटिया तुम्हारा परिवार तो सत्संगी है और मैं यह अच्छी तरह जानती हूं कि तुम्हारे यहां अंडा कोई नहीं खाता तभी मैंने तुम्हें नहीं दिया।’
मैं सोच में पड़ गई। मन ही मन मैंने सोचा कि आंटी कह तो ठीक रही हैं लेकिन मन बार बार कह रहा था कि मुझे आज अंडा खाकर देखना ही है। आंटी और अंडे उबालने में जुटी पड़ी थी।
मैंने उनसे पूछा, ‘आंटी एक बात बताइये अगर मैं घर जाकर अपने मम्मी पापा से पूछ आऊं और वह मुझे अंडा खाने की इजाजत दे दे तो फिर आप मुझे अंडा खाने को दे देंगी।’
उनका उत्तर था, ‘हां, क्यों नहीं।’ मैंने थोड़ा जोर देकर कहा, ‘आंटी, मैं बस घर गई और उल्टे पांव लौटकर आई लेकिन आप यह अंडे सब में बांटकर कहीं खत्म मत कर देना। मेरे लिए एक या दो बचाकर रखना।’ वह बोली, ‘ठीक है। जल्दी जा और वापिस आ।’
मैं उनकी कोठी से बाहर निकलकर उनके फाटक की ओट में छिप गई और बीच बीच में थोड़ा थोड़ा झांककर देखती रही कि मेरे हिस्से के अंडे कहीं मेरे पहुंचने से पहले खत्म न हो जायें।
यह तो मुझे अच्छे से पता था कि मम्मी पापा तो कभी इस बात के लिए राजी नहीं होंगे तो घर जाना या उनसे इस विषय में कोई बातचीत करना कैंसिल। यहीं छिपकर खड़े रहो और सोचो कि मैं घर की तरफ चली। मम्मी पापा मिले, उनसे मैंने यह बात कही। उनसे बातचीत करके मैं वापिस यहां तक पहुंची लेकिन थोड़ी सी जॉगिंग तो कर लूं। खुद को थोड़ा थका तो लूं। सांस फुलाकर हांफ जाऊं। यह तो लगे आंटी को कि मैं भागी भागी गई और दौड़कर वापिस आई। थोड़ी देर बाहर खड़े होकर हांफती हुई मैं गिरती पड़ती आंटी के पास पहुंची। उन्होंने पूछा, ‘फिर क्या बोले तेरे मम्मी पापा।’ मैंने हसरत भरी निगाहों से उन्हें देखकर कहा कि, ‘वह बोले आंटी से कह दे कि वह तुझे अंडा खाने को दे दें।’ मेरी बात पर आंटी को पूरा विश्वास हो गया। उन्होंने झट से एक गर्म गर्म उबला हुआ अंडा नमक के साथ मुझे खाने के लिए दे दिया।
मैंने एक भूखी बिल्ली की तरह ही उसे एक अपने शिकार की तरह झपटकर झट से चट कर लिया। अंडे का स्वाद मुझे आलू जैसा लगा लेकिन कसम खुदा की उससे पहले न उसके बाद मैंने अंडा फिर कभी चखने का प्रयास किया।

मीनल
सुपुत्री श्री प्रमोद कुमार
इंडियन डाईकास्टिंग इंडस्ट्रीज
सासनी गेट, आगरा रोड
अलीगढ़ (उ.प्र.) – 202001

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