अंगद रावण (सवैया छंद)
रावण अंगद से
कुंदलता सवैया
8सगण 2 लघु
जगमें बलवान महान तपी,
कँपते सुन नाम सभी जग अंदर ।
छिपते फिरते बचके न बचें कहिं,
शेष धरा गिरि खोह समंदर।
घुडकी दिखलाय डराय रहा सुन,
मैं अति सूर बली दसकंधर।
सिखला मत ज्ञान मुझे जब तू ,
बस है इक बंदर का लघु बंदर।
अँगद
मत्तगयन्द सवैया
सिर्फ शरीर न देख दशानन,
ताकत में सब ही जन घूमें।
वामन नाप लियो नभ को,
पग तीन धरे तिहु लोकन चूमें।
बीसक नैन निहार जरा लघु,
रूप दिखे घनघोर करूँ मैं।
काँख रहा जिस बंदर के उस,
बंदर का सुत अंगद हूँ मैं। *****************
रावण अंगद से
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बेशक वामन पैर पसार,
बली घर नाप धरा दिखलाई।
वे अवतार रहे प्रभु के सब,
लोकन में अति कीरत छाई।
तू उनसे अपनी तुलना कर के
जग बीचहुँ पाय हँसाई ।
तुच्छ निरीह भरे दरबार करे,
कपि क्यों बकवास बड़ाई।।
अंगद रावण से
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वामन का मुझमें बल रावण,
वामन मोहि दियो पहुँचाई।
वामन ही अब राम बने तिनकी
सुकृपा मुझपै अधिकाई ।
वामन पैर समान मिरा अब,
लो सबके बल कोअजमाई ।
पैर हटे सिय हारहुँ मैं अरु,
वापस जायँ प्रभू रघुराई ।
गुरू सक्सेना
नरसिंहपुर मध्यप्रदेश