अंकित है जो सत्य शिला पर
गीत…
अंकित है जो सत्य शिला पर, पढ़ता हूँ उसको वैसा,
जीवन में सुचि सम्बन्धों का, मोल नहीं होता पैसा।
छोड़ दिया जब से लोगों ने, अपनो का पन्ना पढ़ना।
भूल गये रिस्तो को तब से, सुन्दर साँचे मे गढ़ना।।
दौलत के चक्कर में उलझे, बोल रहे ऐसा- वैसा।
जीवन में सुचि सम्बन्धों का, मोल नहीं होता पैसा।।
ढूँढ रहे हैं रात- दिवस हम, खुशियाँ गाड़ी बँगलों में।
देख रहे हैं ध्यान सजाये, सपने घर के जँगलों में।।
तश्वीरें कुछ पूछ रही हैं, बंधन नेह हुआ कैसा।
जीवन में सुचि सम्बन्धों का, मोल नहीं होता पैसा।।
देख रहे है हम आँखों से, हमने क्या पाया खोया।
काट रहें हैं शस्य वही जो, बीज धरा पर है बोया।।
साल रहा है एकाकीपन, कौन यहाँ पहले जैसा।
जीवन में सुचि सम्बन्धों का, मोल नहीं होता पैसा।।
अंकित है जो सत्य शिला पर, पढ़ता हूँ उसको वैसा।
जीवन में सुचि सम्बन्धों का, मोल नहीं होता पैसा।।
डाॅ. राजेन्द्र सिंह ‘राही’
(बस्ती उ. प्र.)