अँधेरे से सामना
लघकहानी
“अँधेरे से सामना ”
गीता बचपन से ही बहुत बहादुर लड़की थी।उसे डर लगता था तो बस अँधेरे से।उसकी बड़ी बहन सीता ने उसके इस डर को निकालने की बड़ी कोशिश की पर नाकाम रही।गीता अब बड़ी हो गई थी पर उसका डर अभी नहीं गया था।एक कम्पनी में उसको प्राईवेट जॉब मिल गयी थी।सुबह आठ बजे से शाम 6बजे तक।कभी- कभी उसे घर आने में देर हो जाती थी तो उसकी दीदी उससे कहती,”गीता समय पर घर आ जाया करो।आजकल का ज़माना ठीक नहीं है।”गीता हर बार की तरह हँसते हुए कहती,”दीदी मैं इतनी कमजोर नहीं हूँ जो किसी से भी डर जाऊँ,सिर्फ अँधेरे को छोड़कर।”
एक दिन आफिस में ज्यादा काम होने के कारण गीता को देर हो गयी।मोबाइल की बैटरी भी लो हो चुकी थी।रात के 10 बज चुके थे जब वह आफिस से घर के लिये चल पड़ी।ठंड का दिन था।चारों तरफ अँधेरा था।ना कोई गाड़ी दिख रही थी,ना कोई रिक्शा।गीता मं ही मन बहुत डर रही थी।वह जल्दी-जल्दी पैर बढ़ा रही थी कि अचानक हँसी के ठहाकों को सुनकर गीता ठिठक पड़ी।कुछ दूरी पर मनचलों लड़को का झुंड सड़क पर बैठकर शराब पी रहा था।गीता का रोम-रोम सिहर उठा। हिम्मत करके गीता ने दबे पाँव पास की झाडियों की तरफ कदम बढ़ाया और उसमें छुप गयी। आधे घन्टे बाद वो लड़के चले गये।गीता झाडियों से निकलकर अपने घर को चल पड़ी। वह मन ही मन बहुत खुश थी कि जिस बचपन में अँधेरे से डरती थी आज उसी अँधेरे ने मेरी इज़्ज़त और जान बचाई।आज मैने अपने डर पर काबू पा लिया।दीदी सच कहती थी ये ज़माना बहुत खराब है।गीता घर पहुँचकर अपनी दीदी से सारी बात बताकर उससे लिपटकर रो पड़ी।दोनों बहनों की आँखों में खुशी के आँसू थे।
मौलिक
आभा सिंह
लखनऊ उत्तर प्रदेश