अँखियाँ प्यासी हरि दर्शन को अब काहे की देर।
जीर्ण देह स्वर कम्पित लेकिन
मन मंदिर में राम संजोये
बाट जोहती शबरी लेकर,
झोली में कुछ बेर!
अँखियाँ प्यासी हरि दर्शन को अब काहे की देर।
स्वर्णिम लंका यश वैभव सब
था सुरासुरों से मान मिला
ईश भक्ति के कारण जिसको
दश-आनन का उपमान मिला
क्षीण हुआ सब तेज शक्ति का
और गिरा निहंग अभिमानी,
सब हैं विधि के लेखे जोखे
हुआ एक कुल ढेर..!
अँखियाँ प्यासी हरि दर्शन को अब काहे की देर।
पंकज शर्मा परिंदा 🕊️