■ बदलती कहावत…..

#एक_और_प्रयोग:-
【प्रणय प्रभात】
■ पुरखे कहते आए-
“घर का जोगी जोगड़ा,
आन गांव का सिद्ध।”
■ मैंने भी जोड़ दिया-
“उन्हें गरुड़ क्या भाएगा?
जिन्हें भा रहा गिद्ध।।”
बन गया ना दोहा…??
अभिप्राय-
“घटिया लोग घटिया पसंद।”
या फिर
“मलयागिरि के भील न जानें चंदन वाला मोल।”
क्यों करना परवाह…?