*हास्य व्यंग्य*

*हास्य व्यंग्य*
*फूलमाला कार्यक्रम: एक रिपोर्ट*
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ठीक समय पर हम कार्यक्रम स्थल पर पहुंचे । एक ई-रिक्शा से हम उतरे, दूसरी ई-रिक्शा से आयोजन के कर्ताधर्ता महोदय अपने साथ दो मजदूर और एक बैनर लिए हुए उतरे । समारोह के सभागार में हम चारों लोग एक साथ प्रविष्ट हुए । सभागार में हम चारों के प्रवेश करने से सन्नाटा जाता रहा । चहल-पहल हो गई।
आयोजक महोदय हमें देख कर मुस्कुराए, घड़ी देखी और कहने लगे -“देखिए हम ठीक समय पर आ गए ! न एक मिनट पहले, न एक मिनट बाद में । अब सबसे पहला काम मंच पर बैनर लगाने का है ।”
हमने आयोजक महोदय को बधाई दी और कहा कि “समय के इतने पाबंद आजकल लोग कहां हैं ?”
आयोजक महोदय फूलकर कुप्पा हो गए तथा उनकी जैकेट का बीच वाला बटन टूट गया । खैर, कोई बात नहीं । दो मजदूर बैनर लगाने लगे, किंतु बैनर टेढ़ा था । अतः आयोजक महोदय ने काफी देर तक बैनर को ऊंचा-नीचा किया । तब जाकर बैनर में दो कीलें ऊपर की ओर ठोकी जा सकीं। तदुपरांत नीचे की दो कीलें ठोकने का कार्य संपन्न हुआ । टेप से भी आयोजक महोदय ने बैनर कुछ चिपकाया ताकि पंखे की हवा से कहीं बैनर उड़ न जाए ।
इसके बाद आयोजक महोदय ने फूलमाला वालों को फोन किया -“हेलो हेलो ! आपसे फूल मालाएं हमने मंगवाई थीं। कार्यक्रम का समय आरंभ हो चुका है, कृपया आधे घंटे के भीतर ताजी फूलमालाएं भेजने का कष्ट करें ।”
उधर से फूलमाला वाले ने शायद यह कहा था कि वह ताजे फूल चुनकर उनकी मालाएं बना रहा है, अतः आयोजक महोदय ने उससे कहा कि फूल ताजे होने चाहिए । भले ही दस-बीस मिनट की देर और हो जाए । आयोजक महोदय ने कुछ अन्य लोगों को भी इसके बाद फोन करना आरंभ किया ।
एक सज्जन झोले में भरकर थोड़ी ही देर में फूलमालाएं लेकर आ गए । मंच के बराबर वाली मेज फूलमालाओं से भर गई ।आयोजक महोदय ने हमसे कहा -“आप जरा जल्दी आ गए, कार्यक्रम कम से कम एक घंटा बाद तो आरंभ होता ही है ।”
हमने अपराधी भाव से कहा -“अब जब आ ही गए हैं, तो अब क्या कर सकते हैं ?”
आयोजक महोदय हमारी विवशता पर हंसने लगे । कहने लगे -“समारोह में एक-डेढ़ घंटा देर हो सकती है । यह तो सब चलता ही है ।”
लगभग डेढ़ घंटे बाद जब दस-बारह लोग इकट्ठे हो गए, तब आयोजक महोदय ने कार्यक्रम आरंभ करने का मन बनाया। दस-बारह लोग भी यह समझ लीजिए कि जबरदस्ती से बुलाए गए लोग थे । चार तो भाड़े के बुद्धिजीवी जान पड़ते थे । कुछ संगठन के पदाधिकारी थे और कुछ को सम्मानित किया जाना था ।
कार्यक्रम जब आरंभ हुआ तो सर्वप्रथम फूल मालाएं पहनाई गईं। कुल मिलाकर चौदह लोग थे। सात लोग मंच पर बैठे। सात लोग श्रोताओं के रूप में सामने की कुर्सियों पर विराजमान थे। श्रोताओं ने एक-एक करके मंच पर उपस्थित सब लोगों को फूलमाला पहनाई तथा उनके साथ फोटो खिंचवाए। कई लोग क्योंकि मोबाइल पर फोटो खींच रहे थे , अतः फोटो-सत्र में देर तो लगनी ही थी । किंतु मुख्य कार्यक्रम ही फूलमाला पहनाने और फोटो खींचने का था, अतः अत्यंत उत्साह के साथ यह कार्यक्रम चला ।
एक-एक व्यक्ति का नाम पुकारा जा रहा था । किसको फूलमाला पहनानी है और किसके माध्यम से फूलमाला पहनाई जा रही है, जब यह सब चल रहा था तभी बीच में कुछ और लोग भी आ गए । मंच क्योंकि घिर चुका था, अतः ऐसे व्यक्तियों को श्रोताओं की पंक्ति में ही बिठाया गया लेकिन उन्हें फूल माला अवश्य पहनाई गई। आयोजकों की मजबूरी तथा मंच पर जगह की कमी को सब ने महसूस किया तथा अत्यंत आत्मीय भाव से श्रोताओं की पंक्ति में बैठकर ही फूलमाला पहनने में अपार सुख का अनुभव किया ।
धीरे-धीरे कार्यक्रम के समाप्त होने का समय आ गया। आयोजक महोदय ने अध्यक्ष जी से कहा कि -“अब ज्यादा बोल कर लोगों को परेशान करने से क्या फायदा ? सीधे अध्यक्षीय भाषण आप ही दे दीजिए ।”
तदुपरांत अध्यक्ष जी का विद्वत्ता से भरा हुआ भाषण आरंभ हुआ । उन्होंने अपने भाषण में कहा “आज अमुक-अमुक व्यक्तियों को अमुक-अमुक व्यक्तियों के द्वारा जो फूलमालाएं पहनाई गई हैं, यह कार्य इतिहास में स्वर्ण अक्षरों में लिखा जाएगा।” ऐसा कहते समय अध्यक्ष जी ने उन सब व्यक्तियों के नाम लिए, जिनको फूलमाला पहनाई गई थी तथा उन व्यक्तियों के भी नाम लिए जिनके कर-कमलों से फूलमाला पहनाई गई । इस तरह अध्यक्ष जी ने आयोजक महोदय की प्रशंसा करते हुए आग्रह किया कि वह भविष्य में भी फूलमाला पहनाने का कार्यक्रम आयोजित करते रहेंगे तथा इस प्रकार समाज की बहुत बड़ी सेवा उनके द्वारा संपन्न हो रही है । आयोजक महोदय ने अंत में सभी उपस्थित मुख्य-अतिथियों तथा सामान्य-अतिथियों को धन्यवाद दिया, जिनके सहयोग के कारण आज यह ऐतिहासिक फूल माला कार्यक्रम संपन्न हो सका ।
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लेखक : रवि प्रकाश
बाजार सर्राफा, रामपुर (उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 99976 15451