हमें भी देख जिंदगी,पड़े हैं तेरी राहों में।
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हमें भी देख जिंदगी,पड़े हैं तेरी राहों में।
सांस लेना भी अब है शामिल गुनाहों में।
क्यों छोड़ कर चले दिये तुम सरेराह मुझे
क्या। शामिल नहीं थे हम,तेरी पनाहों में।
थक गई हूं मैं,ज़रा सांस तो ले लेने दे मुझे
कयामत के दिन होंगे हम तेरे खैरख्वाहों में।
ये जिंदगी भी कोई जीने लायक है तू बोल
डूबे रहते हैं हरदम,जब हम बस आहों मे ।
सुरिंदर कौर