सौंधी सौंधी महक मेरे मिट्टी की इस बदन में घुली है
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सौंधी सौंधी महक मेरे मिट्टी की इस बदन में घुली है
कैसे तुझसे ये फ़ासले फिर तेरी याद दिल में खिली है
तेरे ही रोशनी से इस अँधेरे जिंदगी में है ये उजाले
एहसान तेरा माँ तेरी ज़मी पर जीने को साँस मिली है
✍️ ®©’अशांत’ शेखर
17/02/2023