सुनती नहीं तुम
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कुछ दिल की कहूं तो सुनती नहीं तुम
इज़हार -ए-इश्क़ करूं तो सुनती नहीं तुम
गम-ए-किस्सा बताऊं तो सुनती नहीं तुम
जब खामोश हो जाऊं मैं तो निहारती हो तुम
कुछ बोल नहीं रहें हो फिर बोलती हो तुम
क्या सोच रहें हो फिर पूछतीं हो तुम
कोई बात है क्या करीब आकर धीरे से कहती हो तुम
कुछ परेशानी है मलीन स्वरों में पूछतीं हो तुम
फिर भी कुछ नहीं बोलता मैं तो
“कुछ तो बोलों” बोलती हो तुम
फिर बहुत गौर से देखती हो तुम
और फिर गुमसुम सी बैठ जाती हो तुम
कुछ पल बाद जज्बातों को समझ जाती हो तुम
फिर मुस्कूराकर I Love ❤️ You बोल देती हो तुम