समझ मत मील भर का ही, सृजन संसार मेरा है ।
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समझ मत मील भर का ही, सृजन संसार मेरा है ।
जरा-सी साँझ है मेरी, जरा-सा शुभ सवेरा है ।
उड़ानें भर अभय होकर, अरे आजाद मन पाँखी –
न केवल मेदिनी तेरी, अखिल आकाश तेरा है ।
अशोक दीप
जयपुर
समझ मत मील भर का ही, सृजन संसार मेरा है ।
जरा-सी साँझ है मेरी, जरा-सा शुभ सवेरा है ।
उड़ानें भर अभय होकर, अरे आजाद मन पाँखी –
न केवल मेदिनी तेरी, अखिल आकाश तेरा है ।
अशोक दीप
जयपुर