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11 Mar 2021 · 2 min read

शिव दोहा एकादशी

हरदम ही जपते रहो, क्या दिवस सुबह-शाम
डमरू वाले देव श्री, शिव-शंकर का नाम //1.//

शिव-शंकर के नाम से, मुक्ति मिले हर धाम
सब देवों में देव यह, पूजो आठों याम //2.//

महादेव को दूध में, चढ़े बेल-ओ-भंग
भक्त भाव में डूबते, बजने लगे मृदंग //3.//

चाहे कोई लोक हो, या हो कोई द्वार
शिव शंकर वो देवता, करते जो उद्धार //4.//

प्रसन्न हो यदि देव तो, खूब करें उपकार
रुष्ट हो महाकाल तो, कर देते संहार //5.//

गंगाजल शिवलिंग पर, चढ़ा करें अभिषेक
सावन में कांवर लिये, आते भक्त अनेक //6.//

भोले के दर पर रमो, हो मन से अभिषेक
सबका ही कल्याण हो, काज करो सब नेक //7.//

सर्प गले, नन्दी निकट, त्रिशूल-डमरू द्वार
गणपति-ओ-माँ पार्वती, भोले का परिवार //8.//

नाग गले, गंगा जटा, डमरू और त्रिशूल
नीलकण्ठ विषपान कर, संकट हरे समूल //9.//

खूब भांग घोटी पिए, तन में भस्म रमाय
भक्तों में मदमस्त यूँ, महादेव कहलाय //10.//

सोने की लंका* तजी, सुख से है परहेज
परवत में कैलाश के, सन्यासी का तेज //11.//

रिश्ता क्या इस्लाम का, काँशी वापी ज्ञान
नगर मन्दिरों का यहाँ, शिव का यह वरदान

____________
*शिव पुराण के अनुसार माँ पार्वती के आग्रह पर उनके लिए भगवान शिव ने विश्वकर्मा व कुबेर से मिलकर समुद्र के बीचों-बीच “सोने की लंका” का निर्माण करवाया था। इसका ज़िक्र रामायण में भी मिलता है। एक बार रावण अपने पुष्पक विमान में बैठकर “सोने की लंका” के ऊपर से गुजरा तो वह “लंका” देखकर मोहित हो गया। लंका को पाने के लिए दैत्य कुल में जन्मे रावण ने तत्काल एक ब्राह्मण का रुप धारण किया और भगवान शिव के पास पहुंचा और भगवान से भिक्षा में “सोने की लंका” मांगी। भगवान शंकर पहले ही समझ गये थे कि यह ब्राह्मण के रुप में रावण है। लेकिन वह उसे खाली हाथ नहीं लौटाना चाहते थे। सो उन्होंने “सोने की लंका” रावण को दान की। जब माँ पार्वती जी को यह बात पता चली तो वह बहुत नाराज हुईं और उन्होंने क्रोधित होकर कहा कि “सोने की लंका” एक दिन जलकर भस्म होगी। इस श्राप के कारण हनुमान जी ने लंका में आग लगाकर उसे राख कर दिया था।

Language: Hindi
Tag: दोहा
3 Likes · 2 Comments · 1138 Views

Books from महावीर उत्तरांचली • Mahavir Uttranchali

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