Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
25 Jan 2024 · 3 min read

वैज्ञानिक युग और धर्म का बोलबाला/ आनंद प्रवीण

आज के इस वैज्ञानिक युग में भी धर्म की रक्षा और मंदिर निर्माण जिस देश के आम चुनाव का अहम मुद्दा हो वहाँ शिक्षा, रोजगार, गरीबी, भूखमरी, किसानों की आत्महत्या, खिलाड़ियों के अपमान जैसे बड़े मुद्दे को नज़रअंदाज़ करना कोई बड़ी बात नहीं होती है। हमारी लड़ाई अशिक्षा और बेरोजगारी से होनी चाहिए थी, पर हम मंदिर और मस्जिद में उलझे हुए हैं। हमारी यह उलझन कभी-कभी इतनी बढ़ जाती है कि उनके लिए बाकी सारी बातें तुच्छ और बेकार लगने लगती हैं ; स्कूल और अस्पताल से ज्यादा जरूरी मंदिर लगने लगता है। ऐसे में हम भूल जाते हैं कि धर्म और ईश्वर के इतर भी हमारे देश में दर्शन की एक लंबी परंपरा रही है। यह अलग बात है कि हम केवल उनके कमज़ोर पक्ष को जान पाए हैं, उनके मजबूत पक्षों को तब के धर्म रक्षकों ने नष्ट कर डाला। नये युग में भी भगत सिंह ने एक तर्कपूर्ण निबंध लिखा-“मैं नास्तिक क्यों हूँ। ” इस निबंध को लिखे शताब्दी होने को है पर जिस स्तर पर भगत सिंह के नाम को याद किया जाता है उस स्तर पर उनके तर्कपूर्ण विचारों को याद नहीं किया जाता है। यह केवल भगत सिंह के साथ ही नहीं है, बल्कि हमारे सभी नायकों के साथ ऐसा ही है। हम केवल नायकों के नाम जानते हैं और उनके एक-दो ऐसे कार्यों को जो उन्हें चर्चा में लाया, पर यह नहीं जान पाते हैं कि राष्ट्र निर्माण के संदर्भ में उनकी सोच क्या थी, अगर उनके विचारों को देश के नीति-निर्धारण में स्थान मिलता तो उसका क्या प्रभाव पड़ता। हम महात्मा गॉंधी को नायक माने या नाथूराम गोडसे को इससे कुछ फर्क नहीं पड़ता, क्योंकि हमारे अधिकतर युवाओं के लिए ये केवल दो नाम हैं। इतिहास में जाकर नायक और खलनायक की पहचान कर पाना वैसे भी कठिन कार्य है; अगर खलनायकों की ताकत चरम पर हो तो यह कार्य और भी अधिक कठिन हो जाता है। वैसे हमारे देश के व्यक्ति पूजक होने की भी लंबी परंपरा रही है। यह व्यक्ति पूजन नाम की पूजा ही है। ऐसे में कबीर और तुलसी के राम में फर्क कर पाना निश्चय ही कठिन होगा, क्योंकि दोनों के आराध्य का नाम राम ही दिखाई पड़ता है।
हमें हमारे नायकों की पहचान कर उनके विचारों से अवगत होना होगा तभी हम असल में उन्हें जान पाएंगे, अन्यथा हमारे नायक झाँकियों के मुखौटे बन कर रह जाएंगे और यह हमारे लिए बहुत बड़ी त्रासदी होगी।
आज स्कूलों में गीता और रामायण पढ़ाए जाने की बात हो रही है। अर्थात् , बच्चों को हमारे पौराणिक कथाओं और मिथकों से अवगत कराया जा रहा है और उन मिथकों के प्रति आस्थावान बनाया जा रहा है। जब तक यह आस्था किसी दूसरे की आस्था से टकराव न पैदा करे तब तक इससे कोई विरोध नहीं है, पर इसकी जिम्मेदारी कौन लेगा कि आगे चलकर यह आस्था दूसरे धर्म को मानने वालों के लिए अवरोध नहीं पैदा करेगा? इसकी जिम्मेदारी कौन लेगा कि धर्म की रक्षा के नाम पर इन बच्चों को दूसरे धर्मों को मानने वाले लोगों के प्रति भड़काया नहीं जाएगा? सरकारी स्कूलों में अगर गीता पढ़ाया जा सकता है तो कुरान क्यों नहीं? अगर स्कूलों में आस्तिकता का पाठ पढ़ाया जा सकता है तो नास्तिकता का क्यों नहीं? क्या हमें चार्वाक दर्शन को नहीं जानता चाहिए? आधुनिक युग के बड़े दार्शनिक ओशो रजनीश का मानना है कि नास्तिक हुए बिना आस्तिकता को ठीक से नहीं समझा जा सकता है। अगर हम चाहते हैं कि हमारे बच्चे वैज्ञानिक दृष्टि से लैस हो तो हमें एकतरफा ज्ञान देने से बचना चाहिए, उन्हें तर्कशील कैसे बनाया जाए इस पर विचार किया जाना चाहिए। हमारे बच्चे जबतक तर्कशील नहीं होंगे तब तक हमारी लड़ाई धर्म और मंदिर- मस्जिद से आगे नहीं बढ़ पाएगी।

आनंद प्रवीण
मोबाइल- 6205271834

191 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
You may also like:
3140.*पूर्णिका*
3140.*पूर्णिका*
Dr.Khedu Bharti
नीर क्षीर विभेद का विवेक
नीर क्षीर विभेद का विवेक
Umesh उमेश शुक्ल Shukla
वक्त जब बदलता है
वक्त जब बदलता है
Surinder blackpen
“दुमका संस्मरण 3” ट्रांसपोर्ट सेवा (1965)
“दुमका संस्मरण 3” ट्रांसपोर्ट सेवा (1965)
DrLakshman Jha Parimal
गीता, कुरान ,बाईबल, गुरु ग्रंथ साहिब
गीता, कुरान ,बाईबल, गुरु ग्रंथ साहिब
Harminder Kaur
कैसी शिक्षा आज की,
कैसी शिक्षा आज की,
sushil sarna
-मां सर्व है
-मां सर्व है
Seema gupta,Alwar
पूरा कुनबा बैठता, खाते मिलकर धूप (कुंडलिया)
पूरा कुनबा बैठता, खाते मिलकर धूप (कुंडलिया)
Ravi Prakash
जब तक मन इजाजत देता नहीं
जब तक मन इजाजत देता नहीं
ruby kumari
🙅प्राइवेसी के तक़ाज़े🙅
🙅प्राइवेसी के तक़ाज़े🙅
*प्रणय प्रभात*
लोकतांत्रिक मूल्य एवं संवैधानिक अधिकार
लोकतांत्रिक मूल्य एवं संवैधानिक अधिकार
Shyam Sundar Subramanian
एक दिन थी साथ मेरे चांद रातों में।
एक दिन थी साथ मेरे चांद रातों में।
सत्य कुमार प्रेमी
साक्षात्कार- पीयूष गोयल लेखक
साक्षात्कार- पीयूष गोयल लेखक
Piyush Goel
कुछ तो गम-ए-हिज्र था,कुछ तेरी बेवफाई भी।
कुछ तो गम-ए-हिज्र था,कुछ तेरी बेवफाई भी।
पूर्वार्थ
जो तू नहीं है
जो तू नहीं है
हिमांशु Kulshrestha
प्रारब्ध का सत्य
प्रारब्ध का सत्य
नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर
आलोचक सबसे बड़े शुभचिंतक
आलोचक सबसे बड़े शुभचिंतक
Paras Nath Jha
*हे शिव शंकर त्रिपुरारी,हर जगह तुम ही तुम हो*
*हे शिव शंकर त्रिपुरारी,हर जगह तुम ही तुम हो*
sudhir kumar
हज़ार ग़म हैं तुम्हें कौन सा बताएं हम
हज़ार ग़म हैं तुम्हें कौन सा बताएं हम
Dr Archana Gupta
"याद रखें"
Dr. Kishan tandon kranti
आप हो न
आप हो न
Dr fauzia Naseem shad
उठो द्रोपदी....!!!
उठो द्रोपदी....!!!
Neelam Sharma
नसीब तो ऐसा है मेरा
नसीब तो ऐसा है मेरा
gurudeenverma198
हम गुलामी मेरे रसूल की उम्र भर करेंगे।
हम गुलामी मेरे रसूल की उम्र भर करेंगे।
Phool gufran
ये नोनी के दाई
ये नोनी के दाई
डॉ विजय कुमार कन्नौजे
* जिन्दगी में *
* जिन्दगी में *
surenderpal vaidya
तू इतनी खूबसूरत है...
तू इतनी खूबसूरत है...
आकाश महेशपुरी
हिन्दी पढ़ लो -'प्यासा'
हिन्दी पढ़ लो -'प्यासा'
Vijay kumar Pandey
“की एक जाम और जमने दे झलक में मेरे ,🥃
“की एक जाम और जमने दे झलक में मेरे ,🥃
Neeraj kumar Soni
एक विद्यार्थी जब एक लड़की के तरफ आकर्षित हो जाता है बजाय कित
एक विद्यार्थी जब एक लड़की के तरफ आकर्षित हो जाता है बजाय कित
Rj Anand Prajapati
Loading...