वहशीपन का शिकार होती मानवता
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जब तक रहे मानस शुद्ध
तब तक नहीं कोई युद्ध
जब मानस होता है कुंद
तब पसरे शत्रुता की धुंध
कत्ल ओ गारद वहशीपन
का शिकार होती मानवता
साज़िश, अविश्वास, नफ़रत
से पग पग पे इंसां सिसकता
हे प्रभु जग के खलनायकों की
मति से हरो शत्रुता का भाव
ताकि जग में कहीं दिखे नहीं
अमानवीय करतूतों के घाव