Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
14 Feb 2022 · 2 min read

लोकतंत्र बस चीख रहा है

लोकतंत्र बस चीख़ रहा है
और पतन अब दीख रहा है

सत्ता लोलुपता है व्यापित
राजनीति केवल है शापित
जनता केवल लूटी जाती
बात पड़े पर कूटी जाती
जनता की आवाज़ नहीं है
कोई नया आगाज़ नहीं है
चौथा खंभा चाटुकार है
बढ़ गया देखो अनाचार है
अधिकारों की बाते खोईं
बिना बात के आँखें रोईं

कृषकों की बस दशा वही है
रूप बदलकर दशा वही है

भाई-भाई लड़ बैठे हैं
इक-दूजे पे चढ़ बैठे हैं
हवा में घोला ज़हर किसी ने
ढाया सब पर क़हर किसी ने
शांति डरी-सहमी रहती है
कांति उड़ी-वहमी रहती है
सालों से जो रहता आया
गैर उन्हीं को फिर बतलाया
आपस में फिर फूट डालकर
दो हिस्सों में बंटवाया

शिक्षा की परिभाषा बदली
जन-जन की अभिलाषा बदली

नेता-चोर-उचक्के-सारे
मजलूमों को चुन-चुन मारें
गाँधी वाला देश नहीं हैं
बाबा-से परिवेश नहीं है
अटल इरादे माटी हो गए
झूठों की परिपाटी हो गए
नेता जी के सपने खोए
भगत-आज़ाद फूटकर रोए
नेहरू ने जो सपना बोया
लगता केवल खोया-खोया

राम-नाम से लूट मची है
अपनों में ही फूट मची है

रहमानों ने कसमें खाईं
बिना बात के रार बढ़ाई
दो हिस्सों में बँट गए सारे
कल तक थे जो भाई-भाई
राजनीति के चक्कर में आ
समता, एकता भी गँवाई
नेता अपनी रोटी सेंकें
गाँव गली और गलियारों में
उनको दिखता प्रेम है केवल
बंदूकों और तलवारों में

हमको आपस में लड़वाकर
खूब मलाई मिलकर खाते

इक थाली के चट्टे-बट्टे
कुछ सिंगल कुछ हट्टे-कट्टे
संसद एक अखाड़ा बनता
वाणी-शर बेशक फिर तनता
जनता को धीरे बहलाते
उनके नायक बन-बन जाते
धूल झोंककर आँखों में भी
ख़ुद को हितकारी बतलाते
धीरे-धीरे पेट बढ़ाते
और खज़ाना चट कर जाते

इक रोटी का दसवां हिस्सा
जनता हित भी काम कराते

कल तक रहते थे जमीं पर
आज आसमाँ चढ़-चढ़ जाते
निश्छल की विनती बस इतनी
इनकी बातों में मत आना
दया,धर्म,सच्चाई का ही
मिलके सब बस साथ निभाना
तोड़े जो भाईचारे को
इस अखंड भारत प्यारे को
उसका हक-सम्मान छीनकर
सत्ता से निष्कासित कर दें

तहज़ीब-मुहब्बत बनी रहे
और तिरंगा-शान बढ़े

परचम फहरे विश्व-पटल पर
आन-बान-गुणगान बढ़े
इक उंगली में शक्ति कहाँ वो
जो मुट्ठी बनकर आ जाए
लोकतंत्र अब हाथ हमारे
संविधान भी हमारे सहारे
आओ मिलकर देश बचा लें
आओ मिल परिवेश बचा लें
बचा-खुचा बस प्यार बचा लें
प्रीत-रीत त्योहार बचा लें

देशप्रेम की डोर बचा लें
प्यारे-न्यारे छोर बचा लें

अपने कर्तव्यों को समझें
सबके मन्तव्यों को समझें
ये देश सभी का कल भी था
और आने वाले दिन में रहेगा
कौन किसे फिर चोर कहेगा
आने वाला दौर कहेगा
देशप्रेम सबसे ऊपर है
इससे आला कोई नहीं
देश रहे महबूब सदा गर
और निराला कोई नहीं

मातृभूमि-रज भाल लगाकर
निश्छल बस इक बात कहे

प्यार पनपता रहे यहाँ पर
सुख-दुःख बाँटें इक-दूजे के
आओ गले अब मिलकर साथी
अपना प्यारा देश बचाएँ
फिर से महक उठे ये धरती
इक ऐसा परिवेश बनाएँ
प्यारा अपना देश बनाएँ
न्यारा अपना देश बनाएँ
आओ अपना देश बनाएँ
मिलके अपना देश सजाएँ
आओ साथी ! आओ साथी!
आओ साथी ! आओ साथी!
मिलके प्यारा देश बचा लें।

अनिल कुमार निश्छल

Language: Hindi
Tag: गीत
290 Views

Books from अनिल कुमार निश्छल

You may also like:
शुभ दीपावली
शुभ दीपावली
Dr Archana Gupta
दिवाली
दिवाली
Aditya Prakash
"म्हारी छोरियां छोरों से कम हैं के"
Abdul Raqueeb Nomani
हमारी
हमारी "डेमोक्रेसी"
*Author प्रणय प्रभात*
क्या ज़रूरत थी
क्या ज़रूरत थी
सुरेन्द्र शर्मा 'शिव'
ग़ज़ल
ग़ज़ल
Shilpi Singh
💐प्रेम कौतुक-332💐
💐प्रेम कौतुक-332💐
शिवाभिषेक: 'आनन्द'(अभिषेक पाराशर)
वृक्षों का रोपण करें, रहे धरा संपन्न।
वृक्षों का रोपण करें, रहे धरा संपन्न।
डॉ.सीमा अग्रवाल
जब कोई साथी साथ नहीं हो
जब कोई साथी साथ नहीं हो
gurudeenverma198
✍️नफरत की पाठशाला✍️
✍️नफरत की पाठशाला✍️
'अशांत' शेखर
उम्मीदों का उगता सूरज बादलों में मौन खड़ा है |
उम्मीदों का उगता सूरज बादलों में मौन खड़ा है |
कवि दीपक बवेजा
कीच कीच
कीच कीच
नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर
जाते जाते मुझे वो उदासी दे गया
जाते जाते मुझे वो उदासी दे गया
Ram Krishan Rastogi
फूल है और मेरा चेहरा है
फूल है और मेरा चेहरा है
Dr fauzia Naseem shad
मेरे देश के लोग
मेरे देश के लोग
Shekhar Chandra Mitra
घर
घर
Sushil chauhan
बाल्यकाल (मैथिली भाषा)
बाल्यकाल (मैथिली भाषा)
Dinesh Yadav (दिनेश यादव)
# मंजिल के राही
# मंजिल के राही
Rahul yadav
दिव्य प्रकाश
दिव्य प्रकाश
Shyam Sundar Subramanian
Kbhi asman me sajti bundo ko , barish kar jate ho
Kbhi asman me sajti bundo ko , barish kar jate...
Sakshi Tripathi
राहे -वफा
राहे -वफा
shabina. Naaz
" राज सा पति "
Dr Meenu Poonia
मैं धरा सी
मैं धरा सी
Surinder blackpen
राजनीति हलचल
राजनीति हलचल
Dr. Sunita Singh
आलिंगन हो जानें दो।
आलिंगन हो जानें दो।
Taj Mohammad
[ पुनर्जन्म एक ध्रुव सत्य ] अध्याय २.
[ पुनर्जन्म एक ध्रुव सत्य ] अध्याय २.
Pravesh Shinde
*पत्रिका समीक्षा*
*पत्रिका समीक्षा*
Ravi Prakash
ये उम्मीद की रौशनी, बुझे दीपों को रौशन कर जातीं हैं।
ये उम्मीद की रौशनी, बुझे दीपों को रौशन कर जातीं...
Manisha Manjari
सफल इंसान की खूबियां
सफल इंसान की खूबियां
Pratibha Kumari
बहाव के विरुद्ध कश्ती वही चला पाते जिनका हौसला अंबर की तरह ब
बहाव के विरुद्ध कश्ती वही चला पाते जिनका हौसला अंबर...
Dr.Priya Soni Khare
Loading...